Tuesday, October 18, 2016

करोड़ों रूपया देकर भी एक क्षण न मिला


     एक कंजूस-महाकंजूस की मौत करीब आयी।उसने करोड़ों रूपये इकट्ठे कर रखे थे।और वह सोच रहा था किआज नहीं कल जीवन को भोगूंगा। लेकिन इकट्ठा करने में सारा समय चला गया, जैसा कि सदा ही होता है। जब मौत ने दस्तक दी तब वह घबड़ाया, कि समय तो चूक गया, धन भी इकट्ठा हो गया, लेकिन भोग तो मैं पाया नहीं। सोच ही रहा था कि भोगना है। यह तो ज़िन्दगी भर से सोच रहा था और स्थगित कर रहा था कि जब सब हो जाएगा तब भोग लूँगा। उसने मौत से कहा, कि मैं एक करोड़ रूपये दे देता हूँ, सिर्फ चौबीस घंटे मुझे मिल जाएं। क्योंकि मैं भोग तो पाया ही नही। मौत ने कहा,कि यह सौदा नहीं हो सकेगा।उसने कहा कि मैं पाँच करोड़ दे देता हूं,मैं दस करोड़ दे देता हूँ,सिर्फ चौबीस घंटे। यह सब उसने इकट्ठा किया पूरा जीवन गँवाकर। अब वह सब देने को राज़ी है चौबीस घंटे के लिये। क्योंकि न तो उसने कभी पूरा मन से साँस ली,न कभी फूलों के पास बैठा,न उगते सूरज को देखा,न चांद तारों से बात की।न खुलेआकाश के नीचे हरी दूब पर कभी क्षण भर लेटा। जीवन को देखने का मौका न मिला। धन एकत्र करता रहा और सोचता रहा,आज नहीं कल,जब सब मेरे पास होगा, तब भोग लूँगा। सब देने को राज़ी है, लेकिन मौत ने कहा कि नहीं। कोई उपाय नहीं। तुम सब भी दो,तो भी चौबीस घंटे मैं नहीं दे सकती हूँ। कोई उपाय नहीं, समय गया। तुम उठो, तैयार हो जाओ। तो उस आदमी ने कहा, एक क्षण,वह मेरे लिए नहीं,मैं लिख दूँ, मेरे पीछे आने वाले लोगों के लिए। मैने ज़िन्दगी गँवायी इस आशा में, कि कभी भोगूँगा और जो मैने कमाया उससे मैं मृत्यु से एक क्षण भी लेने में समर्थ न हो सका। उस आदमी ने यह एक कागज़ पर लिख दिया और खबर दी कि मेरी कब्रा पर इसे लिख देना।
   सभी कब्राों पर लिखा हुआ है। तुम्हारे पास पढ़ने को आँखें हो तो पढ़ लेना और तुम्हारी कब्रा पर भी यही लिखा जाएगा, अगर चेते नहीं। अगर तुम देखो, तो तुम्हें जो मिला है वह अपरंपार है। जीवन का कोई मुल्य है? एक क्षण के जीवन के लिए तुम कुछ भी देने को राज़ी हो जाओगे। लेकिन वर्षों के जीवन के लिए तुमने परमात्मा को धन्यवाद भी नहीं दिया।मरूस्थल में मर रहे होंगे प्यासे,तो एक घूंट पानी के लिए तुम कुछ भी देने को राज़ी हो जाओगे। लेकिन इतनी सरिताएँ बह रही हैं, वर्षा में इतने बादल तुम्हारे घर पर घुमड़ते हैं, तुमने एक बार उन्हें धन्यवाद नहीं दिया। अगर सूरज ठंडा हो जाएगा तो हम सब यहीं के यहीं मुर्दा हो जाएंगे, इसी वक्त लेकिन हमने कभी उठकर सुबह सूरज को धन्यवाद न दिया।

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