Tuesday, September 6, 2016

सन्त हृदय

 
मौलाना रुम साहिब एक बार एक धनी व्यक्ति के घर गये मार्ग में चलते चलते उन्हें काफी देर हो गई।जब वे लगभग रात के दस बजेउस व्यक्ति के घर पहुँचे,द्वार बन्द हो चुका था। उस समय सर्दी भी अत्यधिक पड़ रही थी। रूम साहिब का शरीर ठंड के मारे थर-थर काँप रहा था, परन्तु आँखों से प्रभु प्रेम के अश्रु गिर रहे थे।सर्दी के कारण वे अश्रुकण रूम साहिब की दाढ़ी पर गिरकर बर्फ बनते जा रहे थे। उन्होने इतना कष्ट सहन कर लिया, परन्तु द्वार खटखटाना उचित न समझा ताकि उसे कष्ट न हो और उसके आराम मंे बाधा न पड़े। दरअसल उस व्यक्ति ने हज़रत मौलाना रुम साहिब जी को एक दिन पहले अपने घर पर भोजन के लिये निमन्त्रण दिया था।लेकिन अगले दिन उसे स्मरण ही न रहा कि उसने रुम साहिब को भोजन के लिये निमन्त्रण दिया है और रात उनके आने की प्रतीक्षा किये बिना ही सो गया था।
     जब प्रातः उसने द्वार खोला,तो रूम साहिब की दाढ़ी पर बर्फ जमी देख कर उसका माथा ठनका। कि बहुत भारी भूल हुई। उसने रूमसाहिब के चरणों में गिर कर अपनी भूल के लिये क्षमा मांगी कि मुझसे बहुत भारी अपराध हुआ मुआफ करें। और विनय की,हुज़ूर आप यदि एक बार भी द्वार खटखटा देते, तो हम लोग तुरन्त द्वार खोल देते।आप इस कष्ट से बच जाते और हमें आपके दर्शन तथा सेवा का सौभाग्य प्राप्त हो जाता। रूमसाहिब ने हंसते हुये फरमाया-आपके आराम में बाधा डालने की अपेक्षा मुझे अपने शरीर पर कष्ट वहन करनाअधिक श्रेष्ठ प्रतीत हुआ। और हमारी इस कुर्बानी के बदले अगर तुम परमात्मा की राह में चल पड़ो तो समझो कि ये सौदा बहुत सस्ता है। इस प्रकार के क्रियात्मिक जीवन से सन्त महापुरुष लोगों के सम्मुख प्रमाण प्रस्तुत कर जाते हैं।

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