दूनीचन्द ने श्री गुरुनानक देव जी के चरणों में विनय की-मेरे पास सात लाख रुपये हैं,जिन में हर समय मेरा मन लगा रहता है। आप मुझे कोई ऐसी युक्ति बताएं, जिससे यह माया परलोक में मेरे साथ जा सके।
सतपुरुष तो जगत में आते ही जीवों को प्रमाद की निद्रा से जगाने और उन्हें सत्पथ पर लगाने के लिये हैं, अतएव उन्होने उसे एक सुई देते हुए फरमाया- तुम पहले हमारा एक काम करो। यह सुई संभालकर रख लो, परलोक में हम यह सुई तुम से वापस ले लेंगे।
दुनीचन्द ने सुई ले ली और अपनी स्त्री के पास जाकर बोला-महापुरुषों ने यह सुई दी है और फरमाया है कि इसे परलोक में वापिस ले लेंगे,इसलिये इस सुई को कहीं सम्भाल कर रख लो। उनकी पत्नी ने कहा-जब कि संसार की कोई भी वस्तु यहां तक कि मनुष्य की देह भी उसके साथ नहीं जाती,तो फिर आप यह सुई कैसे साथ ले जायेंगे?यह सुई उन्हें वापिस कर दीजिए। ज्ञात होता है कि यह सुई उन्होने केवल आपकी आँखें खोलने के लिए ही आपको दी है ताकिआपको इस बात का ज्ञान हो जाये कि एक सुई तक भी यहाँ से मरते समय साथ नहीं जाती। वे अवश्य ही पूर्ण महापुरुष हैं और हमारे कल्याण के लिये ही हमारे घर में पधारे हैं।इसलिये मेरी मानिये तो उनकी शरण ग्रहण कर जीवन का उद्धार कीजिये। तत्पश्चात दोनों ने श्री गुरु नानकदेव जी के चरणों में उपस्थित होकर विनय की-गुरुदेव! ये सुई मैं आपको परलोक में कैसे दे सकता हूँ क्योंकि इसे परलोक में मैं कैसे ले जा सकता हूँ। श्री गुरुनानक देव जी ने फऱमाया जैसे एकत्र किया हुआ सारा धन ले जाओगे वैसे ये सुई भी ले जाना। दूनीचन्द तुम अमीर नहीं हो तुम गरीब हो क्योंकि साथ ले जाने वाला धन तुम्हारे पास नहीं है।सम्पत्ति वही होती है जो विपत्ति में काम आये। तब श्री गुरुनानकदेव जी ने यह बाणी उच्चारण की।
लख मण सुइना लख मण रूपा लख साहा सिरि साह।।
लख लसकर लख बाजे नेजे लखी घोड़ी पातिसाह।।
जिथै साइरु लंघणा अगनि पाणी असगाह।।
कंधी दिसि न आवई धाही पवै कहाह।।
नानक ओथै जाणीअहि साह केई पातिसाह।।
अर्थः-किसी के पास लाखों मन सोना हो,लाखों मन चांदी हो,लाखों शाहों का भी वह शाह हो,लाखों की सेना हो,लाखों वादन हों,तथा उस बादशाह के पास लाखों घोड़े हों, परन्तु जहां संसार-सागर को पार करना है, जहाँ अथाह आग-पानी विद्यमान है,जहां किनारा दिखाई नहीं पड़ता, जहां लोग चीख-चीखकर शोर मचाते हैं, श्री गुरुनानक देव जी फरमाते हैं कि वहां पता चलता है कि वास्तविक अर्थों में बादशाह कौन है?बादशाह वास्तव में वही है,जो गुरु कीआज्ञानुसार नाम की कमाई करके भवसागर से पार हो जाता है। श्री गुरुनानकदेव जी के वचन सुनकर दोनों ने श्रद्धासहित उनकी स्तुति कर विनय की हम आपकी शरण हैं हमें भव से पार कीजिए।आपने हमारे ऊपर अत्यन्त कृपा की हैआज हम कृतार्थ हो गये। हमेंअपने शिष्यत्व में लीजिये।श्री गुरुनानकदेव जी ने उन्हेंनाम का सच्चा धन बख्शीश किया। आज्ञानुसार नाम की कमाई कर वे अपना जन्म सफल कर गये और लोक-परलोक संवार गये।
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