Saturday, August 6, 2016

महात्मा जी से चिलम माँगी


     एक महात्मा जो शान्त,गम्भीर स्वभाव के थे, किसी बन में एकान्त कुटिया बनाकर रहते थे।मनुष्य में यदि सद्गुण हों,तो उसकी ख्याति फैल ही जाती है। इन महात्मा के सम्बन्ध में भी धीरे धीरे यह बात दूर दूर तक फैल गई कि आपने क्रोध को जीत लिया है, शान्त शीतल स्वभाव रखते हैं तथा क्षमा और नम्रता आपमें कूट कूट कर भरी है। बहुत से लोग ऐसे होते हैं,जो औरों की प्रशंसाऔर बड़ाई सहन नहीं कर सकते। इसी प्रकार के कुछ लोगों मे यह ठहरी कि इन महात्मा को क्रोध दिलाया जाये।अति उदण्ड प्रकृति के दो व्यक्तियों ने इस बात का बीड़ा उठाया। वे दोनों महात्मा जी की कुटिया पर आये।
     एक ने आते ही कहा,"'महाराज!ज़रा गाँजे की चिलम तो दीजिये।'' महात्मा जी ने नम्र स्वर में उत्तर दिया,"'भाई!हम न गाँजा पीते हैं, न रखते हैं।''तब दूसरा व्यक्ति बोला,""अच्छा!तो तम्बाकू ही पिलवा दीजे।'' महात्मा जी ने कहा,"'हमने तम्बाकू भी कभी इस्तेमाल नहीं किया।'' पहले व्यक्ति ने कहा,""तब तुम साधू होकर जंगल में बैठे क्या करते हो, जबकि तुम्हारे पास न गाँजा है, न चिलम?''
     महात्मा जी सुनकर मौन रहे।परन्तु उधर मौन रहने वाले कहाँ थे? वे तो निश्चय ही करके आये थे कि महात्मा को क्रोध  दिलाना है, इतने में ही वे सब तमाशबीन लोग,जिन्होंने इन्हें यहाँ भेजा था,वे भी इधर उधर से आकर वहाँ एकत्र हो गये,उनके आ जाने पर इन दोनों में से एक ने सब को सुना सुनाकर महात्मा जी पर अनेक मिथ्या दोषारोपण किये। दूसरा भी मौन न रहा। दोनों का अभिप्राय यही था कि किसी प्रकार महात्मा जी को क्रोध आये। परन्तु महात्मा जी पर उनकी इन वाहियात बातों का कुछ भी प्रभाव न पड़ सका और वे पूर्ववत् मौन रह कर सब कुछ सुनते रहे।जब दोनों के द्वारा गालियों के कठोर पत्थर फैंके जाने पर भी उधर से एक तिनका भी फेंका जाता न दिखाई दिया, तो वे दोनों भी थककर मौन हो रहे।अब महात्मा जी अपने स्थान से उठे और शान्त भाव से हँसकर बोले,"'कल ही एक भक्त  शक्कर की एक पुड़िया हमारी भेंट कर गया था। यह लो और इसे जल में घोलकर पी लो, जिससे तुम्हें कुछ शान्ति मिले। तुम लोग बहुत थक गये हो।''
    बुराई के बदले में महात्मा जी का ऐसा सद्व्यवहार देखकर वे दोंनों मारे लज्जा के गड़ से गये। उन्होंने महात्मा जी के चरणों में सर टेक दिया औरअपने अपराध की क्षमा मांगने लगे।और जब महात्मा जी ने हँसकर उन दोनों को क्षमा कर दिया,तो उन्होने पूछा,""महाराज! हमारे इतना कुछ अपशब्द कहने पर भीआपको क्रोध क्यों नहीं आया? महात्मा जी ने उसी प्रकार स्मित-हास्य-पूर्वक उत्तर दिया,""भैय्या!जिसके पास जो भी जिन्स होती है,वह उसी का ढिंढोरा पीटता है और दूसरों को भी वही माल पेश कर सकता है।तुम्हारे पास जो जिन्स थी,वह तुमने हमें दिखला दी। अब हमारे पास जो माल है,बस हम तम्हें पेश कर रहे हैं। तुम्हारी जिन्स तुम्हारे लिये अच्छी हो तो  हो, हमें वह नापसन्द है, इसलिये हमने लौटा दी।'' यह सुनकर दोनों और भी लज्जित हुए और एक बार फिर उन्होने महात्मा जी के चरण  पकड़ कर क्षमा-याचना की। तब महात्मा जी ने कहा,"" सुनो! गलती कोई अऩ्य व्यक्ति करे और हम व्यर्थ अपने मन में आग जला लें, भला यह कहाँ उचित है?क्रोध तो भयानक आग है। यदि तुम्हारे बुरा व्यवहार से हम अपने ह्मदय में आग जला लें, तो अपना ह्मदय ही जलेगा। किसी अन्य का इसमें क्या जावेगा,हमें तो सच्चे गुरु ने यह शिक्षा दी है कि क्रोध करनाऔर अपने तन में छुरा घोंप लेना एक बराबर है। औरों से ईष्र्या करनाऔर विष के घूँट पीना एक ही बात है। दूसरों को गाली देना अपने आपको गाली देना है। किसी के भी दुव्र्यवहारअथवा गालियों से हमारा बिगड़ता ही क्या है,जो हम वृथा क्रोध करें?''उन लोगों ने भी क्रोध तथा दुव्र्यहार से तौबा करली,जिससे उनके जीवन सुधर गये।

No comments:

Post a Comment