Tuesday, July 26, 2016

जितनी ज़मीन घेर लो आपकी


     एक राजा का जन्मदिन था। कहते हैं उसने सारी ज़मीन जीत ली थी। अब उसके पास जीतने को कुछ भी नहीं बचा था। उसने अपनी राजधानी के सौ ब्रााहृणों को भोजन पर आमंत्रित किया। वे उसके राज्य के सबसे विचारशील पण्डित थे। जन्म दिन के उत्सव में उन्होने भोजन किया और पीछे उस राजा ने कहा, मैं तुम्हें जन्म दिन की खुशी में कुछ भेंट करना चाहता हूँ। लेकिन मैं कुछ भी भेंट करूँ तुम्हारी आकांक्षा से भेंट छोटी पड़ जायेगी। तुम न मालूम क्या सोचकर आये होंगे कि राजा क्या भेंट करेगा। तो मैं जो भी भेंट करूँगा, हो सकता है, वह छोटी पड़ जाये इसलिए मैं तुम्हारे मन पर ही छोड़ देता हूँ तुम्हारी भेंट। मेरे भवन के पीछे दूर दूर तक श्रेष्ठतम ज़मीन है राज्य की। तुम्हें जितनी ज़मीन उसमें से चाहिए उतनी पहले तुम दीवाल बनाकर घेर लो, वह तुम्हारी हो जायेगी। जो जितनी ज़मीन घेर लेगा, वह उसकी हो जायेगी।ऐसा मौका कभी न मिला था और वह भी ब्रााहृणों को। वे ब्रााहृण तो खुशी से पागल हो उठे।उन्होने अपने मकान बेच दिये,अपनी धन-संपत्ति बेच दी, सब बेचकर वे वड़ी दीवाल बनाने में लग गये। जो जितना उधार ले सकता था, मित्रों से माँग सकता था, सब ले आये थे।यह मौका अदभुत था।ज़मीन मुफ्त मिलती थी। राज्य की सबसे अच्छी ज़मीन थी।सिर्फ रेखा खींचनी थी,दीवाल बनानी थी।बड़ी बड़ी दीवालें उन्होने बनाकर जो जितनी ज़मीन घेर सकता था,घेर ली। तीन महीनों के बाद जबकि वह ज़मीन करीब करीब घिरने के निकट पहुँच गयी थी, राजा ने घोषणा की कि मैं एक खबर और कर देता हूँ जो सबसे ज्यादा ज़मीन घेरेगा उसे मैं राजगुरु के पद पर भी नियक्त कर दूँगा। अब तो पागलपन और तेज़ हो गया।अब जिसके पास जो भी था,कपड़े लत्ते भी बेच दिये।उच्च ब्रााहृणों ने अपनी लंगोटियाँ लगा लीं क्योंकि कपड़े लत्ते बेच कर भी चार र्इंट आती थीं तो थोड़ी ज़मीन और घिरती थी। वे करीब करीब नंगे और फकीर हो गये। वे ज़मीन घेरने में पागल हो गये। आखिर समय पूरा हो गया। ज़मीन उन्होने घेर ली। दिन आ गया, और राजा वहां गया और उसने कहा कि मैं जांच कर लूँ और राजगूरु का पद दे दूँ। तो तुममें से जिसने ज्यादा ज़मीन घेरी हो, वह बताये। जो दावा करेगा। उसकी जाँच कर ली जायेगी। एक ब्रााहृण खड़ा हुआ। उसको देखकर बाकी ब्रााहृण हैरान रह गये। वह तो सबसे ज्यादा गरीब ब्रााहृण था। उसने एक थोड़ा-सा ज़मीन का टुकड़ा घेरा था,शायद सबसे कम उसी की ज़मीन थी और वह पागल सबसे पहले खड़ा हो गया। और उसने कहा, मेरी ज़मीन का निरीक्षण कर लिया जाये,मैने सबसे ज्यादा ज़मीन घेरी है। मैं राजगुरु के पद पर अपने को घोषित करता हूँ।राजा ने कहा, ठहरो। लेकिन उसने कहा ठहरने की कोई ज़रूरत नहीं,मैं घोषित करता हूँ। बाद में तुम भी घोषणा कर देना चलो ज़मीन देख लो।
      जब उसने दावा किया था तो निरीक्षण होना ज़रूरी था सारे ब्रााहृण और राजा उसकी ज़मीन पर गयेऔर देखकर ब्रााहृण हँसने लगे। पहले तो उसने थोड़ी सी दीवाल बनायी थी। मालूम होता था, रात में उसने दीवाल तोड़ दी थी, रात दीवाल भी न रही। राजा ने कहा,कहाँ है तुम्हारी दीवाल?बस ब्रााहृण ने कहा, मैने दीवाल बनायी थी फिर मैने सोचा, दीवाल कितनी ही बनाऊँ जो भी घिरेगा वह छोटा ही होगा। फिर मैने सोचा दीवाल गिरा दूँ क्योंकि दीवाल कितनी ही बड़ी ज़मीन को घेरे तो भी ज़मीन आखिर छोटी ही होगी। घिरी होगी तो छोटी ही होगी।तो मैंने दीवाल गिरा दी है। मैं सबसे बड़ी ज़मीन का मालिक हूँ।मेरी ज़मीन की कोई दीवाल नहीं हैइसलिए मैं कहता हूँ राजगुरु की जगह खड़ा हूँ।
    राजा उसके पैर पर गिर पड़ा। उसने कहा, मुझे पहली दफा ख्याल में आया है कि जो दीवाल गिरा देता है वह सबका हो जाता है, सबका मालिक हो जाता है और जो दीवाल बनाता है वह कितनी ही बड़ी दीवाल बनाये तो भी ज़मीन छोटी ही घेर पाता है। मनुष्य के चित्त पर बहुत दीवालें हैं, इसके कारण मनुष्य को बड़ा करना है तो उसकी सारी दीवालें गिरा देना ज़रूरी हैं और जो लोग भी इन दीवालों को गिराने में लगे हैं वे ही लोग मनुष्यता की सेवा कर रहे हैं। जिसके मन पर कोई दीवाल न हो तो वही सबका मालिक हो जाता है।

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