Saturday, June 4, 2016

सुन सतगुरु के बैन


     कहते हैं कि एक व्यक्ति ने एक तोता पाल रखा था। यह उन दिनों की बात है जब काशी जी में श्री कबीर साहिब अपने सदुपदेशों द्वारा जीवों को चिता रहे थे। उस व्यक्ति के अड़ोस-पड़ोस से भी कई लोग श्री कबीर साहिब का सत्संग सुनने के लिये जाया करते थे। वे उस व्यक्ति को भी वहां चलने के लिये कहते, परन्तु वह सदा टाल जाता। एक दिन उसके मन में क्या विचार आया कि उसने भी सत्संग में जाने का निश्चय किया। घर से चलते समय स्वाभाविक ही वह तोते से बोला-अच्छा भाई मियाँ मिट्ठु, राम-राम! आज तो हम सत्संग सुनने के लिये जा रहे हैं। तोते ने कहा-आप सत्संग सुनने कहाँ जा रहे हैं?
     उस व्यक्ति ने उत्तर दिया आजकल श्री कबीर साहिब जी की यहाँ बड़ी ख्याति है कि वे लोगों को चौरासी के बन्धन से मुक्त कराने के लिये संसार में आए हैं। उन्हीं का सत्संग सुनने जा रहा हूँ। तोते ने कहा, क्या मेरा एक काम करेंगे? उस व्यक्ति ने कहा-क्यों नहीं करेंगे? तुम काम बताओ। तोता बोला-आप मेरी तरफ से श्री कबीर साहिब जी के चरणों में विनती करके पूछें कि मेरा उद्धार कैसे होगा? अच्छी बात है। यह कहकर वह व्यक्ति सत्संग सुनने चला गया। सत्संग की समाप्ति के बाद एकान्त होने पर उस व्यक्ति ने तोते का सन्देश श्री कबीर साहिब जी को दिया। सुनते ही श्री कबीर साहिब जी ने आँखें मूँद लीं, उनका सारा शरीर थर-थर काँपने लगा और वे अचेत होकर धरती पर लुढ़क गये। उनकी यह दशा देखकर उनके शिष्य घबरा गये। कोई हकीम की ओर दौड़ा तो कोई वैद्य की ओर। श्री कबीर साहिब जी कुछ पल के उपरान्त उठकर बैठ गये, परन्तु मुख से कुछ बोले नहीं। उस व्यक्ति ने भी कुछ पूछना उचित न समझा। और घर की ओर चल दिया। मार्ग में सोचने लगा कि उस तोते का सन्देश सुनते ही श्री कबीर साहिब जी की ऐसी दशा क्यों हुई? बहुत सिर मारा, परन्तु कुछ समझ न सका। जब वह घर पहुँचा तो तोता बोला-राम-राम! आपने श्री कबीर साहिब जी को मेरा सन्देश दिया?
     उस व्यक्ति ने सम्पूर्ण वृत्तांत तोते को कह सुनाया। सुनते ही तोता चुप हो गया, उसकी आँखें बन्द हो गर्इं, शरीर थर-थर काँपने लगा और फिर वह एक ओर लुढ़क गया जैसे शरीर छोड़ गया हो। यह देखकर वह व्यक्ति सोचने लगा कि यह क्या बात है? क्या श्री कबीर साहिब जी और इस तोते में कोई सम्बन्ध है? पहले इसका सन्देश सुनकर उनकी ऐसी दशा हुई और अब उन का सन्देश सुनने पर इसकी भी वही हालत हुई। अब तो ऐसा मालूम होता है जैसे यह तोता मर गया हो। उसने पिंजरे को नीचे उतारा, द्वार खोलकर तोते को बाहर निकाला और इस पर उसे उलट पलटकर देखा और बोला-अफसोस! यह तो मर गया। तोते को मरा हुआ जानकर उसने खाली पिंजरे को अपने स्थान पर टाँगा और तोते को बाहर फेंकने के लिए उसे उठाने को जैसे ही झुका कि क्या देखता है कि तोता वहाँ नहीं है। उसने इधर-उधर देखा तो तोता सामने दीवार पर बैठा था। वह व्यक्ति अत्यन्त विस्मित हुआ और बोला-भाई तोते! यह क्या चक्कर है? तोते ने कह‏ा चक्कर-वक्कर कुछ नहीं है। आपने सत्संग पर जाते समय जब यह कहा कि श्री कबीर साहिब जी चौरासी के बन्धन से मुक्त कराने के लिए संसार में आए हैं तो मैने यह सोचा कि मैं भी इस पिंजरे से छूटने की युक्ति पूछूं। सो मैने श्री कबीर साहिब जी के लिए यह सन्देश दिया कि मेरा उद्धार कैसे होगा। अर्थात मैं इस पिंजरे के बन्धन से कैसे छूटूँगा? मेरी विनती के उत्तर में उन्होंने सांकेतिक भाषा में इस बन्धन से छूटने की युक्ति बता दी, जिसे आपके मुख से सुनकर मैने वही कुछ किया, जिसका श्री कबीर साहिब जी ने संकेत किया था। कि जब तक मुर्दे नहीं बन जाओगे तब तक नहीं छूट सकते। अगर आज़ाद होना है तो मुर्दा बन जाओ। परिणाम आपके सामने है कि उनकी युक्ति पर आचरण करके मैं इस बन्धन से मुक्त हो गया हूँ। श्री कबीर साहिब सचमुच ही बन्धन से मुक्त कराने वाले हैं। इसका मुझे पूरा निश्चय हो गया है। इसलिये यदि आपके मन में चौरासी के बन्धन से मुक्त होने की आकांक्षा है, तो फिर उनकी शरण में जाइये और उनसे मुक्ति प्राप्त करने की युक्ति पूछिये। तोते की बात मानकर उस व्यक्ति ने श्री कबीर साहिब जी की शरण ली और उनकी बताई हुई युक्ति पर आचरण करके संसार के बन्धन से मुक्त हो गया।

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