एक फकीर बहुत दिन तक एक चोर के साथ रहता था।
बहुत दिन उस चोर के साथ रहा ।लोगों ने कहा तुम इस चोर के साथ रहते हो बड़ा
असतसंग है। ये बड़ा दुष्ट संग है। तुम साधु आदमी, तुम चोर के साथ रहते हो
उसके झोंपड़े पे ठहरते भी हो। वो बोला, कि इस चोर से मैने इतना सीखा कि
जितना किसी साधु से भी नहीं सीखा। लोगों ने पूछा, कि तुमने चोर से क्या
सीखा होगा, चोर के पास भी सीखने को क्या है , उसको ही कुछ सीखना है सब, तुम
उससे क्या सीखोगे? बो बोला, मैने इससे बहुत कुछ सीखा। मेरी जीवन धारा ही
इसने बदल दी। ये मेरा गुरु है। जब पहली पहली दफा मैं इसके पास रुका। मैने
कई अद्भुत बातें देखीं। पहली बात तो ये देखी कि इसका काम जब सो जाते हैं तब
शुरु होता है। मैं इससे सीख लिया। अपना जो काम है परमात्मा की खोज का वो
किसी की आँख में न पड़े। वो चोरी है परमात्मा की। वो किसी की आँख में न पड़े
नहीं तो पकड़े जायेंगे मामला खराब हो जायेगा। तो मैने इससे सीख लिया कि अपनी
साधना शुरु तब होनी जब सारी दुनियाँ सो जाये। और अपनी साधना उस तरह होनी
कि किसी को पता न चले। पता चलाने की जो आकाँक्षा है वो साधना में बाधक है
पता चलाने की आकांक्षा कि पता चल जाये कि मैं ध्यान साधता हूँ मैं, भजन
करता हूँ मैं ये करता हूँ मैं वो करता हूँ, तो आप साधक नहीं है। आप केवल
अहंकार के लिये नये आभूषण खोज रहे हैं। ये दम्भ है। इससे मैने सीखाकि
अन्धेरे में काम शुरु करना कि किसी को पता न चले। और इससे मैने सीखा कि ये
जाता था लौट आता था। घुस नहीं पाता था दूसरे दिन जाता था घुस नहीं पाता था।
लौट आता था। पहरे पे लोग थे । रात को जगे थे आपस में बातें कर रहे थे।
दीया जलता था। घुस नहीं पाता था लेकिन जाना नहीं छोड़ता था। खाली वापिस
लौटता था। निराश नहीं होता था, चेहरे पे कोई मलाल नहीं होता था। न थकान
होती थी। मैंने भी कहा कि पक्का अनेक बार भीतर जाता हूँ घुस नहीं पाता हूँ
ताला नहीं तोड़ पाता है। मैने सोचा कि ये चोर है कि कोशिश किये चला जाता है।
मुझे भी कोशिश किये चले जाना है। मैं कोशिश किये ही चला गया। ये चोर मेरा
गुरु है। सारी दुनियाँ इसको कहती थी कि छोड़ इसको। सब बन्द कर कि ये क्या
पागलपन है। सारी दुनियाँ मुझसे भी कहती कि छोड़ो ये परमात्मा, मोक्ष, आत्मा
की बातें सब पागलपन है। इसने नहीं छोड़ा तो हमने भी छोड़ा, जो चोरी नहीं
छोड़ता हम क्यों छोड़ें। इससे मुझे तीन बातें सीखने को मिली। जितना इससे मुझे
सीखने को मिला कहीं नहीं मिला। चोर का संग भी सत्संग हो सकता है साधु का
संग भी असत्संग हो सकता है वो आपकी वृत्ति पर निर्भर है। वो वृत्ति आपकी
सम्यक हो। दृष्टि सम्यक हो।
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