Wednesday, June 15, 2016

वृद्ध को सन्यास के लिये कहा


एक बूढ़े आदमी सन्तों के पास आए। उनकी उम्र कोई होगी अठहत्तर वर्ष। उनके लड़के ने सन्यास ले लिया। लड़का भी कोई लड़का नहीं है, लड़के की उम्र है कोई पचास वर्ष। वे बड़े नाराज़ आए। वे कहने लगे, आप लड़के-बच्चों को सन्यास दे रहे हैं? कौन सा लड़का बच्चा? अपने लड़के को भी साथ लाए थे। उसकी उम्र पचास साल की है। वे कहने लगे, यह तो वेद के प्रतिकूल है। शास्त्र में साफ लिखा है कि अंतिम चरण में सन्यास होना चाहिए। पहला चरण ब्राहृचर्य, दूसरा गृहस्थ, तीसरा वानप्रस्थ, चौथे आखिरी चरण में आदमी को सन्यस्थ होना चाहिए। सन्तों ने कहा, छोड़ो लड़के को, आपका क्या इरादा है? आपका आखिरी चरण आया अगर आप सन्यास लेते हों तो लड़के को मैं समझाता हूं कि न ले। कहने लगे, ज़रा सोचूंगा। फिर दुबारा आऊँगा। ज़रा सोचने-समझने दें। अठहत्तर वर्ष की उम्र में भी अभी सोचने-समझने के लिए रास्ते बना रखे हैं हमने। बेटा ले तो कहते हैं कि आखिरी में लेना, वे खुद आखिरी में हैं। बेटे को आखिरी में लेना, यह नहीं कह रहे हैं, वह सिर्फ इतना कह रहे हैं, अभी मत ले। उसके लिए आखिरी का बहाना है। सन्यास कहीं उम्र देखता है? जागने के लिए कोई उम्र का कहीं बंधन हो सकता है? और अगर तुम जवानी में न जाग सके तो बुढ़ापे में जागना बहुत मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि, जागने के लिए भी ऊर्जा चाहिए। जब तुम अशक्त हो जाओगे, सूख चुके होओगे, जब तुम्हारे पास कुछ भी न बचेगा, तब तुम परमात्मा के चरणों में अपने को चढ़ाने जाओगे। चढ़ाना था तब जब फूल अपनी उमंग में था, चढ़ाना था तब जब कोई सुगन्ध थी जीवन में, चढ़ाना था तब जब कुछ देने योग्य था पास। जब कुछ भी न बचेगा, जब मौत तुमसे छीनने को दरवाज़े पर ही खड़ी रहेगी, तब तुम चढ़ाओगे? वह चढ़ाना झूठा होगा। धोखा तुम किसको दे रहे हो।

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