Sunday, March 6, 2016

हथोंड़ों का आवाज़ में भी नाम सुना


तुम किसी के प्रेम में पड़ जाते हो, तो तुम सब काम करते हो, लेकिन भीतर ह्मदय की धड़कन में प्रेमी का स्मरण बना रहता है। तुम उसे नहीं भूल पाते। उसकी याद बनी रहती है।एक मीठी सी पीड़ा ह्मदय के आस-पास घनीभूत हो जाती है।एक काँटा चुभता रहता है। उस काँटे में चुभन भी है और मिठास भी है। वह चुभन भी सौभाग्य है क्योंकि वह उन्हीं के जीवन में उतरती है,जो धन्यभागी हैं,जिन्होने श्रद्धा को पाया है। एक धुन
बजती रहती है अखण्ड। श्वास-श्वास में वही डोलता रहता है।
     एक मुसलमान फकीर हुआ जलालुद्दीन रूमी।बड़े से बड़े सूफियों में एक। वह अल्लाह-अल्लाह का स्मरण करता रहता था। एक दिन गुज़र रहा था,रास्ते से,जहाँ से गुज़र रहा था, वहां सुनारों की दुकाने थीं। लोग सोने-चाँदी के पत्तर पीट रहे थे। कुछ हुआ! जलालुद्दीन खड़ा हो गया। उसे लुहार, सुनार,जो हथौडियों से पीट रहे थे सोने-लोहे के पत्तरों को, उनमें अल्लाह की आवाज़ सुनाई पड़ने लगी। वह नाचने लगा। वह घण्टों नाचता रहा। पूरा गांव इकट्ठा हो गया। ऐसी महिमा उस गाँव में कभी देखी नहीं गई थी। जलालुद्दीन प्रकाश का एक पुँज मालूम होने लगा। वह नाचता ही रहा,नाचता ही रहा। लुहारों के सुनारों के हथौड़े बन्द हो गये,क्योंकि भीड़ बहुत बढ़ गई।वे भी इकट्ठे हो गये देखने। वह जो चोट पड़ती थी, जिससे अल्लाह का स्मरण आया था,वह भी बन्द हो गई,लेकिन स्मरण जारी रहा,और वह नाचता रहा। उस रात,उस सन्ध्या दरवेश-नृत्य का जन्म हुआ।और जब बाद में, उसके शिष्य उससे पूछते कि तुमने इसे कैसे खोजा,तो वह कहता, कहना मुश्किल है,परमात्मा ने ही मुझे खोजा। मैं तो बाज़ार किसी दूसरे काम से जा रहा था। अचानक उसकी आवाज़ मुझको सुनाई पड़ी।
     लेकिन यह आवाज़ और किसी को सुनायी नहीं पड़ी थी। उसके मन में एक धागा था। एक सेतू था निरन्तर अल्लाह का स्मरण कर रहा था। उस चोट से, उसका मन तैयार था, उस तैयार मन में-अन्यथा कहीं सुनारों या लुहारों की हथौड़ियों से किसी को परमात्मा का बोध हुआ है।

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