Saturday, March 5, 2016

मृत्यु के पाँच पत्र


एक व्यक्ति भोलाराम नाम का अपने खेतों के निकट मकान बनवाकर उसी में रहता था। पूर्ण गुरु का शिष्य,भक्तिभाव सम्पन्न और साधु-सेवी तो था ही,बहुत ही मिलनसार भी था और आने-जाने वाले सभी लोगों का आदर-मान करना उसका स्वभाव था। एक बार की बात है कि एक व्यक्ति उसके मकान के बाहर पेड़ के नीचे आकर खड़ा हो गया।भोला राम ने उसके निकट जाकर पूछा-यहाँ बाहर क्यों खड़े हो? अन्दर आ जाओ और कुछ जलपान कर लो। उस व्यक्ति ने उत्तर दिया-अभी मुझे अवकाश नहीं है, क्योंकि मैने अभी एक अत्यावश्यक कार्य करना है। भोलाराम ने कहा-जलपान में देर ही कितनी लगेगी? फिर ऐसा कौनसा आवश्यक कार्य है,जिसकी तुम्हें इतनी जल्दी है। तुम इस गाँव के तो हो नहीं,परदेसी मालूम पड़ते हो। थके हुए होगे,जलपान कर लो, फिर काम करते रहना। इतनी भी क्या जल्दी है?
     उस व्यक्ति ने उत्तर दिया-मैं मृत्युदूत हूँ।मुझे एक आदमी की जान लेनी है।उसकी जान निकालने में केवल तीन मिनट शेष रह गए हैं।मेरा काम एक मिनट भीआगे-पीछे नहीं हो सकता। भोलाराम उसका उत्तर सुनकर हैरान हुआ,फिर बोला-अच्छा!काम करके आ जाना। मृत्युदूत ने कहा-ठीक है,मैं बाद मेंआ जाऊँगा।इतना कहकर मृत्युदूतअदृश्य हो गया कुछ देर बाद मृत्युदूत जब वापिस आया,तो भोलाराम ने पूछा-उस व्यक्ति की जान निकाल ली? मृत्युदूत ने कहा-जान निकालकर धर्मराज के हवाले भी कर आया। अब वे उसके कर्मों का हिसाब करते रहेंगे। यह उनकी ड¬ुटी है। मेरा काम तो केवल जान निकालने का है। भोलाराम ने पूछा-एक बात बताओ कि जिस व्यक्ति की तुमने जान निकाली है, उसको पहले कोई चितावनी भरा पत्र लिखा था? पहले उसे कोई सूचना भी दी थी या यूँ ही उसकी जान निकाल ली।
     मृत्युदूत ने उत्तर दिया-पत्र तो हम सबको लिखते है, परन्तु हमारे पत्र जिस भाषा में लिखे होते हैं, उसे वे पढ़ नहीं सकते और न ही उन पत्रों का अर्थ उनकी समझ में आता है। इसलिए वे उन पत्रों की ओर तनिक भी ध्यान नहीं देते। उन पत्रों की भाषा तो सन्त सतपुरुष ही समझते हैं। भोलाराम ने कहा-मेरे साथ तुम ऐसा सलूक मत करना।
मुझे अवश्य पहले सूचना दे देना। यदि तुमने मेरे साथ छल और धोखा किया तो यह देखो मेरी लाठी की ओर जिससे मैने शेरों को भी मार भगाया है। मेरी इस लाठी से सब डरते हैं।
    उस समय भोलाराम जवान थाऔर उसकी आयु लगभग28-30वर्ष रही होगी। किन्तु जवानी सदा किसकी स्थिर रही है। समय व्यतीत होता गयाऔर उसके साथ ही भोलाराम कीआयु बढ़ती गईऔर जवानी ढलती गई यहाँ तक कि वह पचहत्तर वर्ष का हो गया।पहले वाला जवानी का जोश समाप्त हो गया और अब वह बूढ़ा हो गया।एक दिन वही मृत्युदूत भोलाराम के पास आया और बोला-भोलाराम जी राम-राम।भोलाराम ने उसको बड़े ध्यान से देखा और फिर उत्तर देते हुए कहा-राम-राम! कहो भाई,कैसे हो?आज किसकी जान निकालनी है? मृत्युदूत बोला-आज तो आपकी जान निकालने आया हूँ। भोलाराम ने यह सुनकर कहा-किन्तु मेरे साथ तो आप वचन करके गए थे कि मेरे प्राण लेने से पहले आप मुझे पत्र लिखकर सूचित करेंगे, परन्तु आप तो बिना सूचना दिये एक दम प्राण निकालने के लिए आ गए।
     मृत्युदूत ने कहा-हम पाँच पत्र प्रायः सबको लिखते हैं और आपको भी हमने पत्र लिखे हैं तथा सबके सब आपको मिले भी हैं। मैने पहले कहा था न कि हमारे पत्र ऐसी भाषा में लिखे होते हैं जो कि प्रत्येक मनुष्य उसे नहीं समझ पाता। भोलाराम बोला-क्यों झूठ बोलते हो? मुझे तो आपका एक भी पत्र नहीं मिला चाहे वह किसी भी भाषा में लिखा हुआ था। मृत्युदूत ने कहा-भोलाराम जी! क्रोध मत करिये। मैं आपको सभी पत्रों के विषय में विस्तार से बतला देता हूँ।मेरी बात कोध्यानपूर्वकसुनिये और फिर उत्तर दीजिये भोलाराम ने कहा हाँ बोलो। मैं सुन रहा हूँ।मृत्युदूत ने कहा-पहला पत्र यह है कि जब मैं आपसे पहले मिला था, उस समय आपके सारे बाल काले थे, परन्तु अब आपके पूरे शरीर में एक भी बाल काला नहीं है। सब बाल दूध की तरह सफेद हो गए हैं। क्या हमारा यह पत्रआपको नहीं मिला? भोलाराम ने उत्तर दिया-यह पत्र तो मुझे कब का मिल चुका। मृत्युदूत ने दूसरे पत्र के विषय में बतलाते हुए कहा-पहलेआपकी नज़र इतनी तेज़ थी किआप चन्द्रमा के प्रकाश में भी डाकओर समाचार पत्र आदि पढ़े लेते थे।परन्तु अब तो आपनेआँखों का आप्रेशन भी करवा लिया है, फिर भी आप तेज़ रोशनी में भी अच्छी तरह नहीं पढ़ सकते। क्या यह दूसरा पत्र आपको नहीं मिला?भोलाराम ने उत्तर दिया-पत्र तो यह भी मिला है। मृत्युदूत ने कहा-अब तीसरे पत्र के बारे में सुनिये। जब आपके साथ मेरी भेंट हुई थी, उस समय आपके दाँत इतने सुदृढ़ थे कि आप दाँतों से बादाम तोड़ कर खाते थे। किन्तु अब तो दो-चार दाँत ही असली रह गए हैं, शेष सब के सब तो निकल चुके हैं, चाहे आपने डाक्टर से निकलवाये हों और चाहे वे अपने आप निकल गए हों। क्या यह तीसरा पत्र आपको नहीं मिला?
     भोलाराम ने सिर हिलाते हुए उत्तर दिया-अवश्य मिला है।
     मृत्युदूत ने कहा-चौथा पत्र यह है कि जब आपसे मेरी भेंट हुई थी, उस समय ज़रा सी आवाज़ से भी आप चौकन्ने हो जाते थे और काफी दूर की आवाज़ भी आप सुन लेते थे। किन्तु अब दूर की आवाज़ तो अलग रही, निकट की आवाज़ भी आप ठीक से नहीं सुन सकते। जब कोईआपसे बात करता है तोआप उसको कहते हो कि ज़रा ऊँचा बोलो पूरी तरह सुनाई नहीं दे रहा। हमारा यह पत्र भी आपको मिला या नहीं?भोलाराम ने उत्तर दिया-पत्र तो यह भी मिला है। तब मृत्युदूत ने पाँचवें पत्र का ज़िक्र करते हुए कहा-अब पांचवें पत्र के बारे में सुनिये। जब मैं पहले यहाँ आया था, उस समय आपने अपनी लाठी दिखाते हुए कहा था कि इस लाठी से मैने शेरों को मार भगाया है, परन्तु अब तो आपकी यह दशा है कि यदि एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं, तो भी इस लाठी का सहारा लेकर जाते हैं। पहले लाठी आपके कन्धे पर होती थी अब लाठी के कन्धे पर आपने अपना  सारा भार डाल रखा है। कमर टेढ़ी, टाँगें कमज़ोर, न वह पहले वाली जवानी रही न शरीर में वह शक्ति। हमारा यह पत्र आपको मिला या नहीं?
     भोलाराम ने कहा- यह भी मिल गया है।
     मुत्युदूत ने कहा- इस तरह से हम लोगों को संकेत में पत्र भेजते हैं, परन्तु पत्रों के अभिप्राय को कोई भी नहीं समझता अथवा समझने का प्रयत्न नहीं करता। ये पाँच पत्र तो हम लगभग सभी को भेजते हैं, आपको तो एक पत्र और भी मिला होगा।
     भोलाराम ने उत्सुकता से पूछा-वह कौन सा?
     तब मृत्युदूत बोला-आपके गाँव के सरपंच का जब स्वर्गवास हुआ था तो उनकी तेरहीं के दिन एक महात्मा जी ने व्याख्यान दिया था। सरपंच का परिवार तथा गाँव के लोग बहुत दुःखी थे,परन्तु जब महात्मा जी ने कहा कि यह तो प्रकृति का विधान है,जो अटल है। इसको किसी प्रकार भी बदला या टाला नहीं जा सकता।इसे चाहे कोई खुशी से सहन करे चाहे रोकर, सहन तो इसे करना ही पड़ेगा। यह कहकर मृत्युदूत न
भोलाराम से पूछा-आपको ये सब बातें याद हैं या नहीं? भोलाराम ने उत्तर दिया- अच्छी तरह से याद हैं। मृत्युदूत ने कहा-अब आपकी मृत्यु में केवल आध घंटा शेष रह गया है।इस समय में आपने जो कुछ करना है, कर लो। अब आध घंटे के लिये मैं आपकी आँखों से ओझल हो जाता हूँ ताकि आपके परिवार का कोई सदस्य मुझे देख न सके। ठीक आधे घंटे बाद मैं फिर आऊँगा। यह कहकर मृत्युदूत अदृश्य हो गया।
     मृत्युदूत के आँखों से ओझल होते ही भोलाराम ने अपनी स्त्री और दोनों पुत्रों को बुलवाया। और उनसे कहा,मेरा इस संसार से जाने का समय आ गया है।मैं तो अब थोड़ी देर का मेहमान हूँ। तुम दोनों आपस में प्रेम प्यार से और सुमति से रहना। तनऔर धन को जितना भी हो सके परोपकार एवं परमार्थ में लगाना,जो भी साधु-सन्त घर पर आये, उनका ह्मदय से आदर-मान करना,श्रद्धा प्रेम से उनकी सेवा करना।और महापुरुषों द्वारा बतलाये हुए प्रभु नाम का अभ्यास करना। यदि तुम मेरी बातों को मानोगे और इन पर आचरण करोगे तो यह निश्चय जानो की तुम्हारा जीवन भी सुख-आनन्द से बीतेगाऔर परलोक भी संवरजायेगा।
     यह कहकर उसने आसन लगाया और आँखे बन्द कर लीं। अपनी वृत्ति को अन्तर्मुख करके इष्टदेव के ध्यान में एकाग्र की।जब निश्चित समय पर मृत्युदूत वापिस आया तो देखा कि भोलाराम की सुरत इष्टदेव के ध्यान में लीन है। उसके देखते ही देखते भोलाराम की सुरत इष्टदेव के चरणों में समा गई।

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