Tuesday, February 9, 2016

महापुरुषों के एक ईशारे से जीव कल्याण


सतपुरुष श्री गुरुनानक देव जी की जन्म साखी में एक साखी का वर्णन मिलता है कि एक बार श्री गुरुनानकदेव जी महाराज बाला और मरदाना के साथ एक गाँव के बाहर पेड़ के नीचे विराजमान थे।प्रभु कीर्तन हो रहा था सर्दियों के दिन थे शाम का समय था एक सौदागर अपने कम्बल व
खेस लेकर उधर से निकला। प्रभु कीर्तन की ध्वनि सुनकर समीप पहुँचा। सतपुरुषों के दर्शन किये उन्हें दण्डवत प्रणाम करके वहीं प्रभु कीर्तन श्रवण
करने का आनन्द लेने लगा।जब कीर्तन समाप्त हुआ तो उसने श्री चरणों में विनय की हे सच्चे पादशाह सर्दी बहुत पड़ रही है ये कम्बल ग्रहण करें। मेरी सेवा स्वीकार करें। श्री गुरुनानक देव जी ने फरमाया कि प्रेमी इन कम्बलों को हम कहाँ उठाते फिरेंगे हमें इनकी आवश्यकता नहीं है लेकिन उसके बार बार आग्रह करने पर कम्बल ले लिये वह सौदागर कम्बल भेंट करके नाम दीक्षा व आशीर्वाद प्राप्त करके चला गया। थोड़ी ही देर में एक दुर्जन व्यक्ति आया उसने देखा कि ये साधु लोग हैं इनके पास नयेऔर बड़े कीमती कम्बल हैं। इनसे छीन लेने चाहिये। संसार में हर प्रकार के जीव होते हैं दुर्जन भी सज्जन भी।महापुरुषों को तो सभी का निस्तार करना होता है उनका रूप ही परमार्थ रूप होता है। जगत कल्याण के लिये ही संसार में आते हैं उस दुर्जन व्यक्ति ने उनसे कहा कि आप ये कम्बल मेरे हवाले कर दो नहीं तो उचित नहीं होगा।रोब दाव जमाने लगा।श्री गुरुनानक देव जी ने फरमाया भाई।कम्बल तो तू भले ही ले ले परन्तु तुझे मालूम है देख कितनी सर्दी पड़ रही है कम से कम हमें कहीं से आग तो ला दे ताकि हम आग जलाकर ताप कर ही गुज़ारा कर लेंगे।पहले तो वह न माना कि आप चले जायेंगे मुझे धोखा दे रहे हैं। फिर भी उसने कहा अगर आप आग चाहते हैं लेकिन मैं आग कहाँ से लाऊं?आग इस समय अब कहाँ से मिलेगी। सत पुरुष श्री गुरुनानकदेव जी ने हाथ का इशारा करके फरमाया कि वो सामने देख एक चिता जल रही है उसी में से आग ले आओ। जब आग लेने के लिये जलती चिता के पास गया तो उसने देखा कि विष्णु पार्षदों मेंऔर यम दूतों में झगड़ा हो रहा है।यमदूतों का कहना था कि इसने(जिसकी चिताजल रही थी)अपनी ज़िन्दगी में कोई शुभ कर्म नहीं किया कभी सतसंग श्रवण नहीं किया इसलिये ये यमलोक ले जाने के योग्य है इसे हम ले जायेंगे परन्तु विष्णु पार्षदों का कहना था कि इसकी तरफ अभीअभी सतपुरुषों ने इशारा
किया है इसलिये ये विष्णु लोक में जाने का अधिकारी है इसे आप नहीं ले जा सकते हम ले जायेंगे। जब उन दोनों का झगड़ा उसने सुना तो सोचने लगा कि जिन सत्पुरुषों केएक इशारे से ही देह त्याग के पश्चात भी आत्मा ये रूह विष्णुलोक को जा रही है।तो अगर इन महापुरुषों की शरण में जाने से उनका सतसंग श्रवण करने से कितना लाभ प्राप्त होगा?मैं भी कितना अधम हूँ जो ऐसे महापुरुषों की सेवा न करके उल्टा उनसे कम्बल छीनकर उन्हें कष्ट देना चाहता हूँ।धिक्कार है मुझे।वह अपनेआप में पश्चातापकरता हुआ वापिस लौट आया श्रीचरणों में दण्डवतप्रणाम कर अपने अपराधों की क्षमा माँगने लगा।विनय करने लगा कि प्रभो मैने अपनी ज़िन्दगी मे कोई शुभ कर्म नहीं किया मेरा निस्तार कैसे होगा। आप अगर कृपा करें तो मेरा निस्तार हो सकता है।मुझपर कृपा करके सतमार्ग दर्शायें सतपुरुषों ने उसकी अचल निष्ठा देखकर उसे नाम दान देकर कृतार्थ कर दिया।

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