Monday, February 8, 2016

शेख सादी साहिब के पास जूते नहीं थे


     शेख सादी साहिब जी एक बार कहीं जा रहे थे। उस समय उनके पाँव में जूते नहीं थेऔर न ही उनके पास पैसेथे कि वे जूते खरीद सकें। वेअपनी इस स्थिति पर दुःखी हो रहे थे कि मार्ग में चलते चलते उनकी दृष्टि एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी,जिसकी दोनों टाँगें नहीं थीं। यह देखते ही शेष सादी साहिब घुटनों के बल वहीं बैठ गए और पश्चाताप करते हुए भगवान के चरणों में प्रार्थना करने लगे-हे मेरे मालिक! यदि तू मुझे भी ऐसा ही बना देता,तो मेरा क्या वश चलता?तेरा लाख लाख धन्यवाद है कि तूने मुझे टाँगे तो दे रखी हैं जिनसे मैं भलीप्रकार चल फिर सकताहूँ।
     इसी तरह ही सांसारिक धन पदार्थों की दृष्टि से भीअपने से नीचे वालों को देखना चाहिए और हर समय प्रभु का उपकार मानना चाहिए कि मुझे प्रभु ने उनसे अधिक धन पदार्थ दे रखे हैं। यदि अपने से ऊँची स्थिति वालों को मनुष्य देखेगा, तो हाय हाय करते हुए ही जीवन व्यतीत होगा। उसे यह विचार करना चाहिए कि भगवान ने उसे जो सुख-सुविधा के सामान दे रखे हैं,यहि वह न देता,तो उसका क्या वश चल सकता था और यदि अब भगवान सब ले ले,तब भी वह क्या कर सकता है?
          दस बसतु ले पाछै पावै। एक बसतु कारनि बिखोटि गवावै।।
          एक भी न देइ दस भी हिरि लेई।तउ मूड़ा कहु कहा करेइ।।
          जिसु ठाकुर सिउ नाही चारा। ता कउ कीजै सद नमस्कारा।।
सतपुरुष फरमाते हैं कि मनुष्य को परमात्मा जो दस वस्तुएँ देता है, उन्हें तो वह चुपचाप संभाल लेता है, उनके लिए तो वह भगवान को धन्यवाद तक नहीं देता, परन्तु एक वस्तु के लिए भगवान के प्रति अपना विश्वास
गँवा लेता है। यदि परमात्मा वह एक वस्तु भी न दे और दी हुई दस वस्तुएं भी वापिस ले ले, तो बताओ! अज्ञानी जीव क्या कर सकता है? इसलिए जिस भगवान के सामने पेश नहीं चल सकती, उस भगवान ने जो कुछ दे रखा है, उसी में सन्तुष्ट रहते हुए सदा भगवान के आगे सिर झुकाना चाहिए और उसके उपकारों को स्मरण करना चाहिए, यही गुरुमुख पुरुष के लक्षण हैं। ऐसे गुरुमुख ही सदा प्रसन्न रहते हैं।

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