Sunday, February 7, 2016

बन्दीछोड़


छठी पादशाही श्री हरिगोबिन्द साहिब जी के बढ़ते हुये यश को देखकर चन्दू हर समय अपने मन में ईष्र्या-द्वेष की अग्नि में जलता रहता था। एकबार उसनेआगरा के एक प्रसिद्ध ज्योतिषी को लालच देकर इस बात पर राज़ी कर लिया कि वह बादशाह जहांगीर के पास जाये और रमल फेंककर अथवा किसी अन्य प्रकार से उसे यह विश्वास दिलाये कि बादशाह के ऊपर साढेसाती आने वाली है। यह साढ़ेसाती बादशाह पर बहुत भारी है।जिसमें बादशाह के प्राण जाने का भी भय है।जब बादशाह इस साढ़ेसाती से बचने का उपाय पूछे,तो उससे यह कहे कि श्री गुरुहरि गोबिन्द साहिब जी को चालीस दिन ग्वालियर के किले में नज़रबन्द किया जायेऔर उनसे यह कहा जाये कि वे बादशाह के कुशल क्षेम के लिये मालिक के आगे प्रार्थना करें।ज्योतिषी लालच में आ गया।चन्दू के कहेअनुसार वह बादशाह के पास गयाऔर उसे साढ़ेसाती का भय दिखा कर कहा कि यदि आप गुरु हरिगोबिंद साहिब को चालीस दिन के लिये ग्वालियर के किले में रखेंऔर वे वहां रहकरआपके लिये मालिक से प्रार्थना करें,तोआपका कष्ट टल सकता है।बादशाह बहकावे में आ गया। उसने गुरुमहाराज जी से विनय की कि आप चालीस दिन ग्वालियर के किले में रहकर मेरे स्वास्थ्य के लिये मालिक से प्रार्थना करें। महापुरुषों की प्रत्येक कार्यवाही जीवों के हित एवं कल्याण के लिये ही होती है। उनके प्रत्येक कार्य में कोई न कोई रहस्य छिपा होता है, जिसे वे स्वयं ही जानते हैं, साधारण जीव उन रहस्यों को क्योंकर जान सकते हैं? श्री गुरुमहाराज जी ने किले में जाना स्वीकार कर लिया।ग्वालियर के किले में उनदिनों बावन राजा कैद थे,जिन्हें अकबर ने किले में नज़रबन्द किया थाऔर जो अब तक वहीं कैद थे।वे जीवन से पूरी तरह निराश हो चुके थे और दुःखों चिंताओं में घुल-घुल कर उनके शरीर अस्थिपिंजर मात्र रह गये थे।श्रीगुरुमहाराज जी के किले में पदार्पण करते ही वहां सतसंग की पवित्र-निर्मल धारा प्रवाहित होने लगी।महापुरुषों के पावन दर्शन कर के तथा उनके कल्याणकारी वचनों को श्रवण करके मुर्दा शरीरों में फिर से जान पड़ गई।उनकी सब चिंतायें,दुःख तथा कष्ट काफूर हो गये। वही किला जो पहले उनके लिये बन्दीगृह था,महापुरुषों के वहां चरण डालते ही अब बैकुण्ठ से भी अधिक सुखदायी बन गया। सभी गुरुमहाराज जी के सेवक बन गये और उनके दर्शन एवं सतसंग के अमृत पान करने के साथ-साथ उनके वचनानुसार नाम का सुमिरण करने लगे। इसी प्रकार कई महीने बीत गये।
     इधर बादशाह जहांगीर को वास्तव में ही रोगों ने घेर लिया और धीरे-धीरे उसका स्वास्थ्य बहुत गिर गया। तब लाहौर के सूफी फकीर मियांमीर ने दिल्ली आकर बादशाह को समझाया कि यह सारा कष्ट तुम्हारे ऊपर इसलिये आया है, क्योंकि तुमने दुष्ट लोगों के बहकावे में आकर गुरु हरिगोबिंद साहिब को, जो कि पूर्ण महापुरुष हैं, ग्वालियर के किले में नज़रबन्द कर दिया।आज इस बात को कई महीने हो गये।
     यदि भलाई चाहते हो, तो उन्हें तत्काल सम्मानपूर्वक रिहा कर दो। जब बादशाह ने गुरुमहाराज जी की रिहाई का सन्देश भेजा,तो गुरु महाराज जी ने उत्तर में बादशाह को कहलवा भेजा कि हमारे साथ इन सब राजाओं को भी स्वतन्त्र करो तो ठीक अन्यथा हम भी इस किले से बाहर नहीं जायेंगे। तब बादशाह ने दोबारा सन्देश भिजवाया कि जितने राजा आपके चोले को पकड़ लेंगे,वे सब आपके साथ बाहर जा सकेंगे। तब गुरुमहाराजजी ने बावन कलियों वाला चोला बनवाकर पहन लिया। प्रत्येक राजा ने एक एक कली पकड़ ली और गुरुमहाराज जी की कृपा से कैद से मुक्ति प्राप्त की।
     महापुरुष तो संसार मेंअवतरित ही इसीलिये होते हैं ताकि वे जीवों को दुःखों, कष्टों तथा चिंताओं की ज्वाला से निकाल कर,चौरासी की कैद से छुड़ाकर,उन्हें सुख एवं आनन्द प्रदान करें और उन्हें हर प्रकार के बन्धन से मुक्ति दिलायें।इसलिये यदि सुख और आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करते हुये जीवन का सच्चा लाभ प्राप्त करने की इच्छा है, तो फिर सच्चे सेवक बनो। मनमति का त्याग कर सद्गुरु की आज्ञा अथवा वचन को दृढ़तापूर्वक पकड़ लो,श्री आज्ञा को श्रद्धापूर्वक ह्मदयंगम कर ह्मदय से उसकी पालना करो। इसी में जीवन का सच्चा लाभ और परम कल्याण है।                 

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