Friday, February 5, 2016

तीन प्रकार की प्रार्थनाएं करने वाले


कजानजाकिस ने अपनी एक किताब में लिखा है, कि मैने  तीन तरह के लोग देखे और तीन तरह की प्रार्थनायें करते देखे।पहले तरह के लोग हैं, वे कहते हैं, ""परमात्मा!हम धनुष हैं,तू हमारी प्रत्यंचा पर तीर को चढ़ा। कहीं ऐसा न हो,कि तू तीर को चढ़ाये ही न,प्रत्यंचा को खींचे ही न और हम जंग खाकर ऐसे ही समाप्त हो जाएं। दूसरे हैं,और दूसरी तरह के प्रार्थना करने वाले लोग,वे कहते हैं,तू प्रत्यंचा पर तीर को चढ़ा, हम तेरे धनुष हैं परमात्मा, लेकिन ज़रा ख्याल से चढ़ाना। कहीं ज्यादा मत खींच देना, कहीं ऐसा न हो,कि प्रत्यंचा टूट ही जाये।और तीसरी तरह के लोग हैं और तीसरी तरह की प्रार्थना करने वाले, वे कहते हैं, हे परमात्मा!हम तेरे धनुष हैं,तू अपने तीरों को हमारी प्रत्यंचाओं पर चढ़ा और फिक्र मत करना, कम ज्यादा का हिसाब मत रखना, तेरे हाथ में टूट भी गये, तो इससे बड़ा कुछ और होना नहीं है।यह जो तीसरी तरह का व्यक्ति है,यही उपलब्ध कर पायेगा। पहली तरह का व्यक्ति कहता है, कहीं हम ऐसे ही न चले जाये, उसकी नज़र अपने पर ही लगी है अभी कहीं ऐसा न हो,
कि जंग खा जायें बिना किसी सफलता के स्वर्ग को जाने, ऐसे ही न खो जायें।हमें तू सफल बना।लेकिन न तो परमात्मा से सम्बन्ध हैप्रार्थना का, न साहस है प्रार्थना का। डर है कि कहीं जंग न खा जायें और डर है कि कहीं असफल न मर जायें लोभ की आकाँक्षा है, लोभ की प्रार्थना है।
     दूसरी तरह के लोग है, ज्यादा चालाक हैं,होशियार है। परमात्मा के साथ भी सौदा करना चाहते हैं,वहां भी अपना गणित लेकर आते हैं।वहाँ भी हिसाब-किताब रखते हैं। दुकानदार हैं। ऐसे व्यक्ति भी परमात्मा के निकट नहीं पहुँच सकते। ऐसे व्यक्ति भी परमात्मा को भी पूरी स्वतंत्रता नहीं दे रहे हैं। उसको भी नियंत्रण में रख रहे हैं। उसको भी बाँधकर चलाना चाहते हैं। परमात्मा को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं, परमात्मा के हिसाब से स्वयं नहीं चलना चाहते।और जब तक तुम परमात्मा के साथ चलने को राज़ी नहीं हो,तब तक तुम उसे उपलब्ध न कर सकोगे। जब तक तुम चाहते हो वह तुम्हारे पीछे चले, तब तक तुम्हारा सम्बन्ध ही न जुड़ पायगा।
     तीसरी तरह के लोग है, तुम तीसरी तरह के लोग बनना। प्यारी है उनकी प्रार्थना और बड़ी महत्वपूर्ण, कि हम तेरे धनुष हैं। हम तेरे साधन है,उपकरण हैं। तू अपने तीरों को चढ़ा। हमारे लक्ष्यों को भेदने की नहीं, तेरे ही लक्ष्यों को भेदने के लिए। हम तो केवल धनुष हैं। तू अपने तीरों को चढ़ा और अपने लक्ष्यों के भेद और इसकी फिक्र ही मत करना, कि हम बचें के टूटें। तेरे हाथ में टूट ही गये तो इससे बड़ा और क्या होना हो सकता है। ये समर्पित हैं। इनकी प्रार्थना में न तो भय है, न लोभ है। इनकी प्रार्थना में तो सिर्फ एक प्रार्थना है और वह प्रार्थना यह है, कि तू
हमें अपना उपकरण बना ले। उस उपकरण बनने में हम मिट जायें, तो हमारा सौभाग्य है।इसलिए यह जानते हुए भी किअपनी कोई पात्रता नहीं है, फिर भी तुम जाना। अगर यह सब जानते हुए तुम गये और विनम्रता से गये और परमात्मा के उपकरण बनने की आकाँक्षा से गये,तो तुम्हारी पात्रता तुम्हें मिल गई। तुम खाली हो, यही तुम्हारी पात्रता है।ऐसी पात्रता वाला ही श्रद्धावान हो सकता है। वह सभी अवस्थाओं में सम रहता है। वह कहता है कि  जन्म जैसे उसने दिया था, मृत्यु भी उसी ने दी। जब जन्म में भी उसी का हाथ था, तो मृत्यु में भी उसी का हाथ है। जब उस का हाथ है,तो सब ठीक है।फिर शिकायत कहाँ?वह कहता है कि हमारी क्या ज़रूरत, तू कर ही रहा है। तू सदा ठीक ही कर रहा है।और हमारे सोचने-विचारने से कुछ बदलता भी तो नहीं। जो होता है, हो होना है,हो रहा है,सब ठीक मेरे बीच में खड़े होने की ज़रूरत ही क्या है। इसी का नाम विनम्रता है, निरहंकारिता है। ऐसा ही व्यक्ति उस को पा लेता है।

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