Wednesday, February 3, 2016

दो मुमुक्षु मुक्त होने के इच्छुक


     किसी महात्मा के पास दो व्यक्तियों ने जाकर विनय की कि महाराज! हमको मुक्त कर दीजिए। और इसी इच्छा को लिये बहुत दिनों तक महात्मा जी के पास जाते रहे, परन्तु महात्मा जी ने उनकी तरफ रुख न किया। एक दिन वे दोनों व्यक्ति किसी गांव से रुपया उगाह कर ला रहे थे कि मार्ग में महात्मा जी के आश्रम पर ठहर गये। महात्मा जी उचित अवसर जान कर एक बड़ा काबुली छुरा अन्दर से निकाल लाये और उनसे पूछा कि क्यों भाई! एक मुक्त होगा अथवा तुम दोनों ही मुक्त होंगे? और यह कहकर पत्थर पर छुरा तेज़ करने लगे। यह देखकर एक तो भयभीत हो गया और उसने सोचा कि महात्मा जी के मन में कुछ पाप आ गया है, इसलिये अपनी थैली उठाकर चुपके से खिसक गया। किन्तु दूसरा बैठा रहा। जब महात्मा जी छुरा तेज़ कर चुके तो पीछे घूम कर देखा कि एक तो भाग निकला है। दूसरे से कहा कि भाई! भला चाहता है तो तू भी जान बचा कर भाग जा, वरना व्यर्थ में मारा जायेगा तो लोगों को इसी प्रकार मुक्त करता हूँ। उसने हाथ जोड़कर विनय की-महाराज! यदि आप इसी प्रकार मुक्त करते हैं तो मुझको शीघ्र मुक्त कर दीजिये, क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि आपका विचार बदल जाये और मैं मुक्त होने से रह जाऊं। महात्मा जी समझ गये कि यह दृढ़ विश्वासी है, नहीं टलेगा। छुरे को तो धर दिया और उसको परमार्थ के भेद समझा कर और अपनी कृपा-दृष्टि डाल कर निहाल कर दिया। ""नानक नदरीं नदरि निहाल'' सन्त सत्पुरुषों ने सत्य कहा हैः-
          यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
          सीस दिये जो गुरु मिलें, तौ भी सस्ता जान।।
          जां बजानां बिदह वगरना अज़ तो बिस्तानद अजल।।
          खुद तू मुन्सिफ बाश ऐ दिल! र्इं निको यां आँ निको।।
अर्थः- अपना जीवन अपने मालिक को समर्पित कर दे अर्थात् उनके नाम पर अर्पण कर दे, वरना मृत्यु का देवता तुझ से छीन कर ले जायेगा। फकीर कहते हैं कि ऐ मन! अब तू स्वयं ही न्यायाधीश बनकर न्याय कर कि यह ठीक है कि तू अपना जीवन अपने हाथों अपने मालिक को सौंप दे अथवा वह ठीक है कि तुझ से तेरे प्राणों को काल बलपूर्वक छीन कर ले जाये।

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