Sunday, February 28, 2016

धन देकर ध्यान लेना चाहा


अहंकार खो जाये, तुम्हें ऐसी प्रतीति होने लगे कि मैं ना-कुछ हूँ, पात्र तैयार होने लगा। जिस दिन पात्र बिल्कुल खाली है,और तुम्हारे भीतर कोई भी नहीं,तुम एक सूने घर हो गये। उसी दिन परमात्मा द्वार पर दस्तक दे देता है।
     एक अज्ञानी,लालची और प्रजापीड़क राजा ने निश्चय किया कि मैं सत्य को भी अपनेअधिकार में लाकर रहूँगा।बहुत से लोग परमात्मा की तरफ भी लालच के कारण ही जाते हैं।सत्य की खोज भी लोभ ही होता है।तुमने सब कमा लिया।इस राजा को भी यही ख्याल होगा।राज्य है,धन है,संपदा है,शक्ति है,प्रतिष्ठा है,सब मिल गया। अब एक चीज़ अखरती है कि अभी तक सत्य नहीं मिला। वह भी तिजोरी में होना चाहिए।
     महावीर के पास वह सम्राट गया और उस सम्राट ने कहा कि मैने सत्य की बड़ी चर्चा सुनी है।और इधर आपके संन्यासी गांव-गांव ध्यान की चर्चा लगा रहे हैं।ध्यान मुझे भी चाहिए। महावीर को चुप देखकर उसने समझा कि शायद महावीर को ठीक-ठीक पता नहीं कि मैं कौन हूं।उसने कहा,आप निÏश्चत रहें,जो भी मूल्य होगा, चुका दूंगा। धन मेरे पास ज़रूरत से ज्यादा है।तो आप कोई चिंता न करें। जो भी कीमत हो, नगद देने को राज़ी हूं। लेकिन ध्यान मुझे चाहिए। महावीर ने कहा, तुम ऐसा करो कि तुम्हारे गांव में एक गरीब आदमी है और बहुत गरीब है। एक-एक पैसों के लिए दीन है,उसको धन की बड़ी ज़रूरत है। और वह ध्यान को उपलब्ध हो गया है। वह मेरा शिष्य है। तुम वहां चले जाओ, और तुम उसको ही राज़ी कर लो बेचने के लिए।
     सम्राट प्रसन्न लौटा। महावीर से तो थोड़ी सी शंका भी थी,संदेह भी था, कि इस आदमी ने सब धन छोड़ दिया है, यह धन के बदले में ध्यान बेचेगा या नहीं?लेकिन यह गरीब आदमी, गांव का भिखमंगा,इसका नाम भी कभी सम्राट ने नहीं सुना था।उसने जाकर उसके घर के सामने सोने की अशर्फियों के ढेर लगा दिए।वह आदमी बाहर आया।उसने सम्राट से पूछा,आप यह क्या कर रहें हैं?सम्राट ने कहा,और ज्यादा चाहिए? तुझे जितना चाहिए,बोल दे। तू बोल,उतना हम देंगे। लेकिन ध्यान चाहिए।
    वह आदमी हँसने भी लगा,रोने भी लगा।उसने कहा,महावीर ने बड़ा गहरा मज़ाक किया,आप समझे नहीं। ध्यान बेचा नहीं जा सकता। आप चाहें तो मुझे खरीद सकते हैं। लेकिन मेरे ध्यान को मैं कैसे दे सकता हूँ? ऐसा नहीं है कि देने में मेरा कोई अस्वीकार है। ऐसा भी नहीं है कि न देना चाहूँगा। देना भी चाहूँ तो भी नहीं दे सकता हूँ।सम्राट पूछने लगा, क्या अड़चन है? तुम मुझे कहो। उस गरीब आदमी ने कहा,अड़चन मेरी तरफ से नहीं है,ध्यान का स्वभाव ऐसा है। उसे कोई किसी को कैसे दे सकता है?

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