Saturday, February 27, 2016

यात्री को कहा उठो और चलो


  1.           आस्ते भग आसीनस्य ऊध्र्वस्तिष्ठति तिष्ठतः।
              शेते निषद्यमानस्य चराति चरतो भगः।। चरैवेति चरैवेति।।
    अर्थात् लेटे हुये पुरुष का भाग्य सोया रहता है,बैठे हुये का भाग्य बैठा रहता है,खड़े होने वाले का भाग्य खड़ा हो जाता है और चलने वाले का भाग्य भी चलने लगता है,इसलिये चलते रहो, चलते रहो। कहने का तात्पर्य यह कि कर्मशील मनुष्य का जीवन ही सफल जीवन है।अन्य शब्दों में यूं कहा जा सकता है कि जीवन में सफलता एवं समृद्धि उसी के चरण चूमती है, जो दत्तचित होकर अर्थात अपनी सुरति को एकाग्र करके अपने कार्य में जुट जाता है। ऐसा व्यक्ति एक एक पग बढ़ाता हुआ निरन्तर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता जाता है और एक दिन अपने लक्ष्य को प्राप्त करने सफल हो जाता है। इसी पर एक कथा है।
         एक व्यक्ति ने जोकि एक छोटे से गांव का रहने वाला था, किसी नगर में जाकर काम काज करने का विचार किया और लोगों से यह पूछकर कि वह नगर किस दिशा में है,प्रातः काल होते ही उस ओर चल पड़ा।ग्रीष्म ऋतु थी। लगभग तीन चार घंटे यात्रा करने के उपरांत वह एक ऐसे स्थान पर पहुँचा जहाँ आमों का एक छोटा-सा बाग था, जिसमें एक कुआँ भी था। चूंकि वह कुछ थक गया था और उसे प्यास भी सता रही थी,अतः उसने वहाँ कुछ देर विश्राम करने का निश्चय किया। उसने अपने झोले में से रस्सी-लोटा निकाला और कुएँ का मीठा एवं शीतल जलपीकर एक पेड़ की छाया में विश्राम करने लगा।लेटे-लेटे वह सोचने लगा-पता नहीं नगर यहांसे कितनी दूर हैऔर मैं कब तक वहाँ पहुँचूँगा? यदि कोई व्यक्ति मिल जाये तो उससे पता करूँ। तभी एक किसान जिस का खेत बाग के पास ही था, कुएँ पर बैलों को पानी पिलाने आया।यात्री ने वहीं लेटे-लेटे उससे पूछा-क्यों भाई!अमुक नगर तक मैं कब तक पहुँच जाऊँगा?किसान ने घुमकर देखा कि एक व्यक्ति पेड़ के नीचे लेटा हुआ है। किसान ने एक क्षण उसकीओर देखाऔर फिर बोला-उठो और चलो। यात्री बोला-हाँ भाई! उठना और चलना तो मुझे है ही, परन्तु मैं तुमसे यह पूछ रहा हूँ कि अमुक नगर तक मैं कब तक पहुँच जाऊँगा? किसान ने दृष्टि उठाकर उसकी ओर देखा और पुनः वही संक्षिप्त उत्तर दिया-उठो और चलो। यात्री लेटे-लेटे सोचने लगा-यह कैसा मनुष्य है, जो यात्रियों से भी हंसी-ठट्ठा करता है?उसे उसपर कुछ क्रोध आया, परन्तु क्रोध को दबाकर उसने पुनः कहा-भैया! यह तो मैं भी अच्छी तरह जानता हूँ कि बिन चले मैं उस नगर तक नहीं पहुँच सकता, फिर तुम मुझे बार-बार उठने और चलने का उपदेश क्यों दे रहे हो? मैं तो केवल यह पूछ रहा हूँ कि उस नगर तक मैं कब तक पहुँच जाऊँगा?
        किन्तु किसान पर जैसे उसकी बातों का कोई प्रभाव ही न पड़ा हो। बैलों को पानी पिलाते हुये उसने अपना वही उत्तर फिर दोहरा दिया-उठो और चलो।अब तो यात्री को सचमुच ही क्रोध आ गया और वह लगभग चीखते हुये बोला-तुम पागल तो नहीं हो जो उठो और चलो,उठो और चलो की रट लगाये हुए हो?उठकर चलना मुझे है कि तुम्हें?तुम्हें उसकी चिन्ता क्यों सता रही है? मैं पूछ कुछ रहा हूँ और तुम उत्तर क्या दे रहे हो? अरे भाई!मैने तुम से यह पूछा है कि अमुक नगर तक मैं कब तक पहुँच जाऊँगा? किसान ने उसके क्रोध पर तनिक भी ध्यान न देते हुए वही उत्तर दोहरा दिया-उठो और चलो। यात्री को क्रोध तो बहुत आया, परन्तु फिर यह सोचकर वह चुप हो गया कि इससे माथापच्ची करने से क्या लाभ?उस नगर तक जाना तो मुझे ही है, चलो उठकर चलते हैं, जितना समय लगना होगा वह तो लगेगा ही। मन में यह विचार करके वह अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ और नगर की ओर चलने लगा। किन्तु अभी वह दस-बारह पग ही चला था कि पीछे से आवाज़ आई-सुनो!यात्री ने रुकते हुये कहा अब क्या कहना चाहते हो? किसान ने कहा-मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देना चाहता हूँ। मेरे अनुमान केअऩुसार दोपहर ढलने तक तुम अपने लक्ष्य पर अवश्य पहुँच जाओगे। यह सुनते ही यात्री क्रोध से भड़क उठा। लाल-पीला होते हुये वह बोला-अजीब आदमी हो तुम भी! मेरे बार-बार पूछने पर तो तुमने'उठो और चलो'की रट लगाये रखी औरअब जबकि तुम्हारे व्यवहार से तंगआकर मैने यात्रा आरम्भ कर दी है, तब तुम मेरे प्रश्न का उत्तर दे रहे हो। तुमने पहले ही यह उत्तर क्यों न दिया?
       किसान बोला-भैया!तुम्हीं सोचो कि तुम्हारे प्रश्न का उत्तर पहले कैसे दिया जा सकता था?तुम लेटे-लेटे पूछ रहे थे कि मैं उस नगर तक कब तक पहुँच जाऊँगा? तुम कब  तक  यहाँ लेटे रहोगे, यह मैं कैसे जान
    सकता था?और जब तक तुम लेटे हुये थे, उठकर चल नहीं पड़े थे, मैं कैसे कह सकता था कि तुम कब तक उस नगर में पहुँच जाओगे। बिना चले तो तुम जीवन पर्यन्त वहां तक नहीं पहुँच सकते। दूसरे, मैं तुम्हारी चलने की गति भी नहीं जानता था। गति देखे बिना भी तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देना कठिन था।अब जबकिअपने स्थान से उठकर तुम चल पड़े हो और मैने तुम्हारे चलने की गति भी देख ली है,तोअब मैं निश्चित रूप से ही यह कह सकता हूँ कि यदि तुम इसी गति से चलते रहे तो दोपहर ढलने तकअवश्य उस नगर तक जा पहुंचोगे।यात्री किसान की बुद्धिमत्ता पर चकित रह गया। उसने अपने अशिष्ट व्यवहार के लिये किसान से क्षमा मांगी और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ गया।
         इसलिये यदि आप अपने लक्ष्य पर पहुँचना चाहते और सफलता का मुख देखना चाहते हैं तो उपरोक्त कथन-""चलते रहो,चलते रहो''पर अभी से आचरण करना आरम्भ कर दीजिये। आपने अपने जीवन का चाहे कोई भी लक्ष्य निर्धारित कर रखा हो,उस तक पहुँचने के लिये यह आवश्यक है कि आप उस लक्ष्य की ओर तत्काल चलना आरम्भ कर दें।जबआप जिस गति से लक्ष्य की ओर बढ़ेंगे,उसी हिसाब से हीआपको लक्ष्य तक पहुँचने में समय भी लगेगा। ह्मदय में यह बातअच्छी तरह दृढ़ कर लें कि सफलता इऩ्हीं दो बातों पर निर्भर करती है। एक तो यह कि जब तक आप अपने कार्य में सफल न हो जायें तब तक चैन से न बैठें, निरन्तर अपने कार्य में जुटे रहें और दूसरे आपके काम करने में गति अर्थात लगन हो। जितनी ही अधिक लगन काम मे होगी उतनी ही शीघ्र आपको सफलता भी मिलेगी।    

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