Thursday, February 18, 2016

यह घर नहीं सराय है....


यहां घर मत बनाना।यहाँ सराय में ही ठहरना है ये प्रतीक्षालय है यहाँ लार्इंन लगी है मौत आती जाती है लोग  विदा हो जाते हैं तुम्हें भी विदा हो जाना है। यहां जड़ें जमा के खड़े होने की कोई ज़रूरत नहीं जितनी जड़ें जमाओगे उतना ही दुःख होगा।जो इस संसार में ज़ड़ें नहीं जमाता वही सन्यासी है जो तत्पर है सदा जाने को इस जगत से  वही सन्यासी है। जो बनजारा है खानाबदोश है वही सन्यासी इसलिये तम्बू लगा लेना घर न बनाना क्योंकि ये संसार सराय है।
      एक सूफी फकीर हुआ शाह इब्रााहीम।पहले वह बलख का सम्राट था एक रात उसने देखा कि महल की छत्त पर कोई चल रहा है पूछा कौन आधी रात को महल की छत्त पर चल रहा है ?कौन हो तुम?वह बोला मेरा ऊंट खो गया है उसकी खोज कर रहा हूँ। इबार्हीम को भी हँसी आ गई।उसने कहा,ऐ मूर्ख क्या तू पागल हैक्या तेरी बुद्धि जवाब दे गई है कि छत्त पर ऊँट की खोज कर रहा है।ऊंट कहीं छत्त पर मिलते हैं?अगर कहीं खो गया है तो ऊँट छत्त पर पहुँचेगा कैसे?उस व्यक्ति ने कहा पहले मुझे मूर्ख,पागल या बुद्धिहीन कहो पहले अपने बारे में सोच। मुझसेअधिक तो तू पागल और बुद्धिहीन है जो धन में,वैभव मे,सूरा में, संगीतमें, साम्राज्य में,प्रभु प्रेम को,शाश्वत आनन्द को पा लेना चाहता है। यदि धन में,वैभव में, साम्राज्य में, परमात्मा मिल सकता है तो छत्त पर भी ऊँट मिल सकता है। इब्रााहीम चौंकाआधी रात थी भागा। पकड़ो इस आदमी को ये कोई जानकार आदमी मालूम होता है लेकिन तब तक वो आदमी निकल चुका था।इब्रााहीम ने अपने आदमियों से कह रखा था कि पता लगाओ कि कौन आदमी था। कोई पहुँचा हुआ फकीर मालूम होता है। उसने भी कैसी बात कही किस प्रयोजन से कही। रात भर सो न सका। सुबह दरबार में बैठा था उदास था मलिन चित था कि बात ही उसको चुभ गई थी चोट कर गई।बात तो ठीक कहता था कि अगर ये आदमी पागल है तो मैं कौन सा बुद्धिमान हूँ।किसे सुख मिला है संसार में?यही तो मैं भी खोज रहा हूँ।सुख संसार में मिलता नहीं अगर मिल सकता है तो ऊँट भी छत्त पर मिल सकता है। पर ये आदमी कौन है कैसे पहुँच गया छत्त पर फिर कहाँ भाग गया?
     इब्रााहीम इन्हीं विचारों में खोया सिंहांसन पर बैठा था तभी उसने देखा कि दरवाज़े पर कोई झंझट चल रही है एक आदमी भीतर आना चाहता है दरबान से कह रहा है कि मैं सराय में रूकना चाहता हूँ। दरबान ने कहा पागल हुये हो ये सराय नहीं सम्राट का महल है। बस्ती में सराय बहुत है वहां जाकर ठहरो। पर वो आदमी कह रहा है मैं इसी सराय मेंठहरूँगा मैं पहले भी यहाँ ठहरता रहा हूँ।सराय ही है तुम किसी और को बनाना। अचानक उसकी आवाज़ सुनकर इब्रााहीम को लगा कि आवाज़ तो वही है और ये वही आदमी है उसने कहा उसे भीतर लाओ हटाओ मत। वो भीतर लाया गया इब्रााहीम ने पूछा कि तुम क्या कह रहे हो?किस तरह की जिद कर रहे हो? ये मेरा महल है इसको तुम सराय कहते हो ये अपमान है। उसने कहा अपमान हो या सम्मान।एक बात मैं पूछता हूँ।मैं पहले भी यहाँ आया था लेकिन तब इस सिंहासन पर कोई और था इब्रााहीम ने कहा मेरे पिताश्री थे। उस फकीर ने कहा उसके पहले भी मैं आया था तब कोईऔर ही था।इब्रााहीम ने कहा वो मेरे पिता के पिता थे। तभी तो मैं इसे सराय कहता हूँ कि यहाँ लोग बैठते हैंआते हैं चलते जाते हैं।तुम कितनी देर बैठोगे?में निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि अगली बार मैं आऊँगा तो कोई और  ही बैठा  मिलेगा। इसलिये तो सराय कहता हूँ।ये घर नहीं है घर तो वही है जहाँ बस गये तो बस गये जहाँ से कोई हटा न सकेगा,जहाँ से हटना सम्भव नहीं इब्रााहीम सिंहासन से उतर गया कहा कि मैं आपको प्रणाम करता हूँ। ये सराये है आप ठहरें मैं चला जाता हूँ क्योंकि अब सराय में रुकने का क्या काम? इब्रााहीम फकीर हो गया।

No comments:

Post a Comment