संसार में दो प्रकार के लोग मिलते हैं। पहली प्रकार के लोग सदा दूसरों का भला सोचते हैं। उनकी रूचि सदा परोपकार में रहती है। वे अपना सर्वस्व संसार के हित के लिए न्योछावर करने के लिए तैयार रहते हैं। उनका जीवन ही जन-कल्याण के लिए होता है। एक बार एक मनुष्य ने बिनौले से पूछा-"अरे बिनौले, तुझे प्रकृति ने नरम नरम गद्दों से भीतर लपेट कर पैदा किया और उस पर सख्त हरा ढक्कन लगाया।
कितना सुन्दर रूप था तुम्हारा।तुझे क्या सूझी किअपने आपको बेलने में झोंक दिया और बर्फ जैसी सफेद कपास से अलग होकर नंगा हो गया। प्रकृति ने कितनी उज्जवल पौशाक दे दी थी,नंगा होने मेंतुझे क्या मिला? 'बिनौले ने उत्तर दिया-""मैं इसलिए बेलने की पीड़ा सहन करके नंगा हो जाता हूँ क्योंकि मैं ससार के लोगों का नंग नहीं देख सकता,न उनकी भूख देख सकता हूँ। उनको वस्त्र देने के लिए मैं अपने आपको बेलने में डालता हूँ और भोजन (घी,तेल) देने के लिए कोल्हू में फैंक देता हूँ। मुझ से दूसरों का अभाव सहन नहीं होता।''
देखो बिनौला वापुड़ा मन का बड़ा जो धीर।
खाल उतारे अपनी , पर का ढके शरीर।।
जो लोग बिनौले की तरह परोपकारी होते हैं, वे सदा आदर के पात्र होते हैं। संसार सदा उनकी पूजा करता है और वे इतिहास में अमर पद प्राप्त करते हैं।
दूसरी प्रकार के लोग--
एक बार मैं खेतों में घूम रहा था। वहां सनुकड़े(सन) के पौधे उगे हुए थे। मैने एक पौधे से कहा-""भाई सनुकड़े,तेरा भी क्या जीवन है?किसान तुझे काटकर पूलियाँ बनाकर गन्दे जौहड़ में फैंक देता है। वहां तूं तीन चारमास तक पड़ा सड़ता रहता है।जोहड़ में तू दूरदूर तक बदबू फैलाता है। फिर निकाल कर तेरी छाल उधेड़ी जाती है। लोग रस्सियां रस्से,बना लेते हैं। तुझे ऐसा जीवन क्यों पसन्द है?''सनुकड़े ने कपट-भरी मुस्कान से मेरी ओर ताकते हुये उत्तर दिया,""भाई,मैं संसार के जीवों को स्वतन्त्र घूमते देखना पसन्द नहीं करता।जब मैं किसी को रस्से रस्सियों से बन्धा देखता हूँ तो मेरा मन में शान्ति का अनुभव होता है। दूसरों को बन्धन में डालने के लिए ही सारा कष्ट सहर्ष सहन करता हूँ।''
सन की देखों दृष्टता, करत न आवे लाज।
खाल उतारे अपनी, पर बन्धन के काज।।
दूसरी प्रकार के लोग सनुकड़े की भांति होते हैं। वे दूसरों को कष्ट देने के लिए अपने आपको कष्ट में डालना पसन्द करते हैं।वे सदा अपकार करने में रूचि रखते हैं। इन लोगों का जीवन संसार के लिए एक अभिशाप होता है।
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