Friday, February 12, 2016

धाटम चोर


     मीना जाति का एक भक्त था घाटम।उसका व्यवसाय ही यह था कि चोरी-डकैती से जो कुछ मिले उससे गुज़ारा करना। एक दिन एक उच्च कोटि के महात्मा से घाटम की भेंट हो गई। महात्मा जी ने पूछा कि महाशय!तुम कौन हो और क्या काम करते हो? उसने कह दिया कि मैं डाके डाला करता हूँ और लोगों को लूट-पाट करके अपनी उदरपूर्ति कर लेता हूँ।महात्मा जी ने सह्मदय भाव से कहा कि यह धन्धा छोड़ कर कोईऔर साधनअपना लो तो बहुतअच्छे बन जाओगे-क्यों व्यर्थ में दूसरों का खून चूसकर अपना पेट पालते हो?घाटम ने विनय पूर्वक उत्तर दिया महात्मा जी! यह हमारा पिता-दादाओं का दिया हुआ व्यवसाय है इसे कैसे छोड़ा जा सकता है। मैं और कुछ कर ही क्या सकता हूँ। महात्मा जी उसका ऐसा स्पष्ट उत्तर सुन कर चुप हो गये और थोड़ी देर रूक कर फिर बोलेः-
     देखो,हम तुम्हें इस चोरी-डकैती के काम से रोकना नहीं चाहते तुम यही व्यवसाय करो परन्तु हमारी चार बातें मान लो। इनकेअऩुसार चलने का पूरा प्रयत्न करते जाओगे तो भी तुम्हारे जीवन में सुन्दर परिवर्तनआ जाएगा।घाटम ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा कि मैं इतनी बात तो मान सकता हूँ।वे चार बातें कौन सी हैं मुझे बता दीजिये, सुनो पहली बात तो यह कि जो बात हो सच सच कहना-कभी असत्य न बोलना दूसरा सन्त महात्मा जनों की सेवा करना-तीसरा जो कुछ भी खाना पहले उसे अपने इष्टदेव जी के अर्पण कर लेना।चौथी बात यह कि आरति जहाँ भी होती हो उनमें अवश्य जाना।अब घाटम महात्मा जी के वचनअनुसार उन चार बातों को अपने जीवन में ढालने लगा। समय की बात होती है-अच्छे सात्विक संस्कारों के उदय होने का वक्त भी आ चुका था।
     एक दिन उन्हीं महात्मा जी ने घाटम को सन्देश भिजवाया कि हमारे स्थान पर आज महोत्सव है तुमअवश्य पहुँचो। घाटम ने पत्र पढ़ा और विचार किया कि वह स्थान जहाँ मुझे ग्यारह बजे पहुँचना है सात मील दूर है और इस समय साढ़े दस बजा चाहते हैं,श्री महात्मा जी को रुष्ट भी नहीं करना चाहता परन्तु जाऊँ कैसे!पैदल जाने का काम नहीं। घाटम में सत्यव्रत का पालन करने से निर्भयता आने लगी थी। वह निश्शंक होकर  राजा की  घुड़साल में घुस गया। ज्यों ही द्वार से अन्दर जाने लगा द्वारपालों ने उसे रोककर पूछ लिया,तुम कौन हो जो इस तरह बिना पूछे अन्दर घुसे जा रहे हो? घाटम ने बिना किसी हिचकिचाहट के कह दिया कि मैं चोर हूँ। वे सोचने लगे कि यह चोर भी कैसा है? जो अपने को साफ साफ चोर बता रहा है, चोर नहीं होगा-राजदरबार का कोई आदमी होगा जो इस तरह निःसंकोच भीतर चला गया है।
     घाटम ने एक मनपसन्द घोड़ा छाँटाऔर उसपर सवार होकर सर्राटे से चल दिया।मार्ग में एक स्थान परआरति हो रही थी-वह भक्त घोड़े को बाहर कहीं पेड़ के साथ बाँधकर आरति में चला गया। उधर घुड़साल के पहरेदारों को जब वास्तविकता का पता लगा तो वे घुड़सवार सिपाहीघोड़े के पद-चिन्ह देखते हुए वहाँ जा पहुँचे। देखते क्या हैं कि घोड़ा बाहर पेड़ से बँधा है और वह महाशयअन्दर आरति में मग्न हैं। जब घोड़े पर दृष्टि गई तो चकित हो गये यह देखकर कि हमारा घोड़ा तो श्वेत था और यह है काला घोड़ा!सत्य है जो शक्ति सम्पूर्ण विश्व का संचालन किया करती है और सबको निर्बन्ध करने वाली है वह अपने प्रेमी को बन्धन में कैसे डाल सकती थी!उसी ने घोड़े का रंग बदल दिया।आरति समाप्त होनेपर घाटम बाहर आया-वह ज्यों ही घोड़े पर सवार होने लगा तो सिपाहियों ने कहा कि तुम यह घोड़ाअश्वशाला से चुराकर लाये हो तुम राजा के पास चलो। घाटम ने कहा कि अब तो मैं अपने गुरुमहाराज जी के आश्रम में महोत्सव पर जा रहा हूँ- तुम ने भी साथ चलना हो तो चलो। वहाँ से लौट कर जब आऊँगा तब मुझे राजा के पास ले चलना।
     सत्यवादी भक्त घाटम लौट कर आया और सिपाहियों को साथ लेकर राजदरबार में पहुँचा। महाराज  को  सारी गाथा अथ से इति तक कह दी।राजा प्रसन्न हुए और कहा कि तुम्हें जो कुछ चाहिये मुझसे माँग लो। घाटम ने इतना ही कहा कि मैं जब कभी गुरुदर्शनों के लिये जाया करूँगा तो आप की अश्वशाला से एक घोड़ा ले लिया करूंगा-इस प्रकार गुरुदेव जी के बताए हुए सन्मार्ग का अनुसरण करते हुए भक्त घाटम जीवन्मुक्त हो गया।
     यह है सत्य पुष्प की सुगन्धि जिस के सूँघने से एक डाकू भी सच्चरित्र और सत्य प्रिय बनकर शेष सभी दुवर््यसनों से विमुक्त होकर सुशील संयमीऔर सदाचारी बनगया। सत्य की नाव पर सवार होकर घाटम ने राजा तक को भी अपना सेवक बना लिया।

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