Friday, January 29, 2016

छीत्तस्वामी ने सड़ा नारियल भेंट किया


इसी प्रकार छीतस्वामी जी की कथा भी पढ़ने सुनने और मनन करने योग्य है।वे मथुरा के एक चौबे के लड़के थे,परन्तु बचपन से ही कुसंगति में पड़करअसाधु प्रकृति के हो गये थे।अपनी टोली केसाथ प्रत्येक व्यक्ति को परेशान करना मानो उनका ध्येय ही था। मथुरा में रहने वाले तथा वहां आने जाने वाले साधु महात्माओं को भी वे बहुत तंग किया करते थे। जब छीतस्वामी जी की आयु बीस वर्ष की हुई, उन दिनों की घटना है। गोसार्इं विट्ठलदास जी जो कि उच्चकोटि के सन्त थे और गोकुल में निवास करते थे, उनकी महिमा चारोंओर फैल रही थी।छीतस्वामी ने भी उनकी महिमा सुनी और अपने साथियों सहित गोकुल जा धमके। उन्होने गोसार्इं विट्ठलदास जी के चरणों में पहुँचकर मत्था टेकाऔर मज़ाक के रूप में कुछखोटे रुपयेऔर सड़ा नारियल भेंट किया।गोसार्इं विट्ठलदास जी ने छीतस्वामी की ओर देखाओर मुस्कराते हुए बोले-तुम्हारे इस उत्तम उपदेश के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
     छीत स्वामी तो यह आशा लगाए बैठे थे कि खोटे सिक्केऔर सड़ा नारियल देखकर गोसार्इं जी क्रुद्ध हो उठेंगे और तब अपनी मंडली सहित वे उन्हें परेशान करेंगे, परन्तु यह अप्रत्याशित शब्द सुनकर वे चौंक उठे। उन्होने कहा-उपदेश कैसा? गोसार्इं जी बोले-अरे भैया!खोटे सिक्कों द्वारा तुम हमेंयही तो उपदेश करना चाहते हो न कि इनकी तरह ही संसार की प्रत्येक वस्तु खोटी है। खरा तो केवल प्रभु का नाम, प्रभु का प्रेम और भक्ति है।और सड़े नारियल से तुमहमें यह जलताना चाहते हो कि संसार में जितने भी खाद्य पदार्थ हैं, सब समय पाकर सड़ जाते हैं,फिर इनके द्वारा पोषित हुआ शरीर सदा स्वस्थ कैसे रह सकता है? उसका भी तो एक दिन यही परिणाम होना है। वह दिन आए उससे पहले ही भजन-सुमिरण करके मनुष्य को अपना परलोक संवार लेना चाहिए।छीतस्वामी जी पर इन वचनों का ऐसा गहरा प्रभाव पड़ा कि वे गोसार्इं जी के चरणों में लिपट गएऔर अपनेअनुचित व्यवहार के लिए क्षमायाचना की,अपितु उनके परमश्रद्धालु शिष्य बन गए। गोसार्इं जी के मधुर वचनों ने उन्हें सदा के लिए अपना बना लिया। तभी तो कहा गया है।
          ""जहाँ राम होता है मीठी ज़ुबाँ से''
उर्दू में राम का अर्थ है--वश में होना।अर्थात मीठी ज़ुबान से सारा संसार वश में हो जाता है। इसके विपरीत कटु वचनों से मित्र भी शत्रु बन जाते हैं कटु एवं कठोर वचन तीर के समान दिल में घाव करते हैं। तीर का घाव तो धीरे धीरे भर जाता है, परन्तु कटु वचनों का घाव कभी नही भरता। वह सदा ह्मदय को सालता रहता है। कथन भी हैः-
         करगस सम कड़वे वचन, घाव करैं गंभीर।।
         जाके  हिरदय  में लगें,  सालें सदा सरीर।।
द्रौपदी के ये वचन कि""अन्धे की सन्तान अन्धी ही होती है।''दुर्योधन के ह्मदय को सदा सालते रहे और इसका जो दुष्परिणाम हुआ वह सबको विदित ही है। इसलिए कोयल से शिक्षा ग्रहण कर सदा मधुर वचन बोलो। कौए की तरह कभी कर्कश अथवा कटु वचन न बोलो। सन्तों के ये वचन सदैव स्मरण रखो।
          तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।
          वशीकरण यह मंत्र है, तजि दे वचन कठोर।।

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