Thursday, January 21, 2016

ज्योतिष सिर्फ इतना ही कहता है कि " ऐसा भी संभव हो सकता है'


 एक ज्योतिषी काशी से बारह वर्ष ज्योतिष का अध्ययन करके वापस लौटा है अपने गांव, जब वह अपने गांव लौटा है तो बड़ी पोथियां लाया है ज्योतिष की, बड़ा अध्ययन करके लौटा है और बड़ा निष्णात हो गया है भविष्यवाणी करने में। जब वह अपने गांव के करीब आ रहा है तो नदी की रेत पर उसने देखे हैं कि किसी व्यक्ति के पैरों के चिन्ह बने हैं और पैरों में तो वे चिन्ह हैं जो चक्रवर्ती के होना चाहिए। भरी दोपहरी हैं, साधारण सा गावं है, छोटी सी नदी है, गंदी रेत है, उस पर चक्रवर्ती खुले पैर चला तो इसकी कोई आशा नहीं है।
     वह तो बहुत घबरा गया। उसने कहा अगर चक्रवर्ती एक साधारण गांव में खुली रेत पर नंगे पांव घूमता हो इस भरी दोपहरी में, तो हो गया हल। फिर मेरे पोथे का क्या होगा? मेरे शास्त्र का क्या होगा? उसे तो ऐसा लगा कि अगर यह चक्रवर्ती का पैर ही है और चिन्ह साफ हैं- तो इन पोथियों को इसी नदी में डुबा देना चाहिए और घर पहुंच जाना चाहिए कि मैं गलत शास्त्र पढ़ गया हूं, पर उसने कहा, इसके पहले मैं पता तो लगा लूं, यह आदमी कहां है? तो वह पैरों के चिन्हों के पीछे चल कर जाता है तो एक वृक्ष के नीचे बुद्ध को बैठे पाता है, तो वह बुद्ध को देखता है, तो बड़ी मुश्किल में पड़ जाता है, चेहरा तो चक्रवर्ती का है, आँखें चक्रवर्ती की हैं, शरीर तो भिखारी का है, भिक्षा पात्र बगल में रखा हुआ है, नंगे पैर है आदमी। तो वह जाकर कहता है कि महाराज, मुझे बहुत मुश्किल में डाल दिया, बारह वर्ष की सारी साधना व्यर्थ हुआ जा रही है। यह आपके पैर में चक्रवर्ती का चिन्ह है और आप हैं भिखारी, तो मैं अपने शास्त्रों को नदी में डुबो दूं? तो महात्मा बुद्ध उसे कहते हैं, शास्त्र को नदी में डुबाने की ज़रुरत नहीं है। मैं चक्रवर्ती हो सकता था, वह मेरी संभावना थी, वह मैने त्याग कर दी। और जब मैं पैदा हुआ था तो ज्योतिषी ने यह कहा था कि यह लड़का या तो चक्रवर्ती होगा या संन्यासी। तो मेरे पिता ने पूछा कि या क्यों लगाते हैं? ज्योतिष में या क्यों लगा रहे हैं आप? तो कहिए कि चक्रवर्ती होगा या संन्यासी। तो उस ज्योतिषी ने कहा कि ज्योतिष सदा भविष्य की संभावनाओं की सूचना है। ज्योतिष कभी भी दो और दो चार जैसा सुनिश्चित नहीं है कि कल ऐसा होगा ही। ज्योतिष सिर्फ इतना कह रहा है कि ऐसा भी हो सकता है, अन्यथा भी हो सकता है।
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