Tuesday, January 12, 2016

मैं खुदा से ही माँग लूँगा-19.01.2016


शहनशाह अकबर के समय में एक फकीर था, जो भीख माँगकर दोनों समय का भोजन पा लेता थाऔर मालिक की याद किया करता था। यों उस फकीर की गुज़रान सन्तोषयुक्त थी। एक दिन पाँव पसारकर किसी मस्जिद में लेटा हुआथा कि मस्जिद के मुल्ला ने उससे कहा,""ऐ फकीर! यह क्या तुम प्रतिदिन द्वार द्वार के टुकड़े माँगकर खाते हो, सुनों, मैं तुम्हें बताऊँ!सम्राट अकबर महान के यहाँ सभी हाजतमंदों और बेनवाओं को मुँह माँगा मिलता है।वहाँ एक बार चले जाओ और इतना ले आओ कि फिर किसी द्वार पर जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी। सन्तोषप्रिय फकीर मुल्ला के बहकाने मेंआ गयाऔर अकबर के महल की तरफ चल पड़ा।
     शहनशाह अकबर नमाज़ और रोज़े के बड़े पाबन्द थे।इसी प्रकार वे अन्य सभी धार्मिक क्रियायें भी समयानुसार करते थे।महल के अंदर ही उन्होंने नमाज़ अदा करने के लिये मस्जिद बनवा रखी थी और नियम अनुसार पाँचों वक्त नमाज़ पढ़ा करते। जिस समय यह फकीर महल में दाखिल हुआ,संयोगवश उस समय शहनशाह हुज़रे में थेऔर संध्या समय की नमाज़ अदा कर रहे थे। दरबान ने उसे सवाली जानकर बताया कि वह कुछ देर प्रतीक्षा करे,जब तक की महाबली नमाज़ से फारिग हो लें, तब उसकी प्रार्थना सुनी जायेगी। फकीर ने कहा कि मैं वहीं हुजरे में ही बैठ रहूँगा। दरबान को भला इसमें क्या आपत्ति हो सकती थी,क्योंकि अकबर के यहाँ फकीरों का बड़ा आदर हुआ करता था। फकीर वहीं बैठा हुआअकबर को नमाज़ अदा करते देखता रहा। अकबर की नमाज़ समाप्त हुई,तो उन्होंने नियानुसार दुआ के लिये हाथ उठाये। फकीर यह
सब ध्यान से देख रहा था। दुआ के उपरन्त अकबर कलमा पढ़कर उठे और मुख फेरते ही उनकी दृष्टि सवाली पर पड़ी। बोले,""कहो फकीर मियाँ। कैसे आये?''
     फकीर ने शिष्टाचारपूर्वक सलाम किया और बोला,""शहनशाह! मैं अपना प्रयोजन तो फिर बताऊँगा। पहले आप यह बताने का कष्ट करें कि अभी अभी नमाज़ के बाद आप हाथ उठाकर क्या कर रहे थे?'' अकबर ने एक अट्टहास किया,""फकीर होकर इतना भी तुम नहीं जानते कि मैं नमाज़ अदा करने के उपरान्त दुआ माँग रहा था।'' ""हाँ! लेकिन किससे और क्या दुआ माँग रहे थे?''फकीर ने बड़े गम्भीर भाव से दूसरा प्रश्न किया।""अरे! खुदा से दुआ माँग रहा था, और किससे माँगता?''शहनशाह के माथे पर बल पड़ गये, ""और अपने ऐश्वर्य तथा साम्राज्य की उन्नति की दुआ माँग रहा था।भला मुझे और क्या माँगना था?''अति सरल भाव से फकीर ने कहा,""बस तो फिर मुझे इज़ाजत दीजिये।मैं चला।'' अकबर ने आगे बढ़कर फकीर की भुजा थाम ली, नहीं फकीर साहिब। आपने अपने आने का प्रयोजन तो प्रकट किया ही नहीं। ऐसे कैसे जा सकते हैं आप?'' फकीर ने कहा,"'मैं आया तो था याचक बनकर,मगर जो स्वयं याचक हो, उससे क्या याचना करना।'' अकबर ने कहा,क्या मतलब?फकीर का कथन पूर्ववत गम्भीर था कहा, ""मतलब यह है शहनशाह!आपने स्वयं कहा है कि अभी अभी आप अपने ऐश्वर्य और साम्राज्य की बढ़ौतरी के लिये खुदा से दुआ माँग रहे थे। अर्थात् आप खुदा के दरबार में याचक बनकर याचना कर रहे थे।'' अकबर ने कहा,""इसमें संशय क्या है, खुदा की रहमत के तुफैल ही तो यह सब ऐश्वर्य है। उससे न मांगे तो और किससे माँगने जायें?'' बस तो फिर मैं भी उसी से माँगूँगा। आपके द्वार पर याचना लेकर आने में मैने गलती की। फकीर ने बड़े साहस के साथ उत्तर दिया। जो स्वयं याचक हो वह किसी को दे भी क्या सकता है? यह कहकर फकीर वहाँ से चलता हुआ। आखिर तो वह ईश्वर विश्वासी फकीर था, इसीलिये अत्यन्त निर्भीक और सन्तोषी भी था।

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