Tuesday, January 12, 2016

सन्तोष धन 16.01.2016


      किसी शहर में एक सेठ जी रहते थे, जिनका नाम आशाराम था। उनके पास बहुत से मकान थे और बहुत-सा धन था। सोने चाँदी की भी उनके यहाँ कोई कमी न थी। परन्तु फिर भी वे और अधिक धन जमा
करना चाहते थे। उन्हें अपने नाती-पोतों तक की चिंता थी।एक दिन उस शहर के मन्दिर में एक सन्त आकर ठहरे। उनके विषय में ऐसा प्रसिद्ध था कि वे सबकी इच्छा पूरी कर देते हैं।आशाराम को भी उन सन्त जी के आने का समाचार मिला। उनके मन में आशा जगी कि शायद सन्त उनकी इच्छा पूरी कर देंगे। दूसरे ही दिन आशाराम पैदल चलकर सन्त जी की शरण में पहुँचे और उन्हें प्रणाम करके एक ओर बैठ गए। सन्त जी ने बड़े प्रेम से उनसे बातचीत की। वे समझ गए कि आशाराम को किस चीज़ की ज़रूरत है।वे बोले-आपकी इच्छाअवश्य पूरी हो जायेगी।
यह सुनकर सेठ आसाराम बड़े प्रसन्न हुए। तभी सन्त जी ने पुनः कहा- परन्तु इसके लिए एक शर्त है वह आपको पूरी करनी पड़ेगी। शर्त की बात सुनकर आशाराम मन में बहुत घबराये। उन्होंने सोचा कि सन्त जी कहीं रूपया पैसा न माँग बैठें।पर उन्हें चूँकिअपनी इच्छा पूरी करनी थी, इसलिये हिम्मत करके बोले- शर्त बताइये महाराज! मैं उसे ज़रूर पूरी करूँगा। सन्त जी ने कहा-आपकी कोठी के पास ही एक गरीब परिवार रहता है। परिवार में केवल दो प्राणी हैं-माँऔर बेटी।आप उन्हें कल के भोजन के लिए सामान दे आइए।आशाराम के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं थी। वह सोचने लगे-अब मेरी इच्छा अवश्य पूरी हो जायेगी। वह शीघ्र ही घर पहुँचे और भोजन का सामान लेकर उस गरीब परिवार के पास गए।वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि किवाड़ खुले हैंऔर माँ-बेटी काम में लगी हुई हैं।किसी ने भीआशाराम कि ओर ध्यान नहीं दिया।आशाराम कुछ देर खड़े रहे,फिर बोले-मैं तुम्हारे लिए खाने का सामान लाया हूँ। माँ ने कहा-बेटा!आज का खाना तो हमारे पास है,इसलिये हम इसे नहीं लेंगे। माँ! भोजन की आवश्यकता तो आपको कल भी होगी।आप इसे कल के लिए ही रख लें।""हम कल की चिंता नहीं करते। हमारी चिंता भगवान करते हैं। उनपर हमारा पूरा भरोसा है।''मां ने उत्तर दिया। ऐसा कहकर वह फिर काम में लग गई।
     मां की बात सुनकर आशाराम खड़े रह गए। वे विचार करने लगे। धीरे धीरे उनकी समझ में बात आ गई। उन्होंने सोचा कि यह परिवार गरीब अवश्य है, लेकिन है बहुत सन्तुष्ट इसे कल की कोई चिंता नहीं। एक मैं हूँ जो नाती-पोतों की चिन्ता कर रहा हूँ।आशाराम घर नहीं गए। वे सीधे सन्त जी के पास पहुँचेऔर उन्हें प्रणाम किया। सन्त जी ने पूछा -उस गरीब परिवार को खाने का सामान दे आए? आशाराम ने कहा-महाराज!आपने मेरी आँखें खोल दीं।सचमुच सन्तोष ही सबसे बड़ा धन है। दुनियाँ में सन्तोष ही सबसे बड़ा सुख है। सन्त जी ने हँसकर कहा-जिस इच्छा से तुम यहाँ आए थे,तुम्हारी वह इच्छा पूर्ण हो गई।आशाराम ने अपना सारा धन परोपकार एवं परमार्थ में लगा दिया। अब वे बड़े प्रसन्न और सुखी थे।

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